लेखक की कलम से
फागुन के रंग …
शतरंगी यादें हुई,
प्रीतम फागुन मास।।
शब्द बन तितली उड़े,
सपनों के आकास।।
प्रेम गगरिया में भरे,
फागुन जुल्मी रंग।।
तन-मन को ऐसा रंगा,
मैं भी रह गई दंग।।
फागुन आंगन में नचे,
भर पिचकारी रंग।।
शतरंगी जुग्नू उड़े,
पिया बसंती अंग।।
तन-मन पर चढ़ने लगा,
फागुन बैरी रंग।।
नश-नश पर छाने लगी,
पिया सुराही भंग।।
बिरह अग्नि तन में लगी,
मन बन गया पतंग।।
सांसों की डोरी लिए,
उड़ी पिया के संग।।
©जाधव सिंह रघुवंशी, इंदौर