लेखक की कलम से

भजन ….

 

तुम्हारी शरण में बसर चाहता हूँ

कृपा की ज़रा सी नज़र चाहता हूँ

 

दुखों में हूँ डूबा ये सब बीत जाये

महकती हुइ सी सहर चाहता हूँ

 

प्रभू पूरी कर दो  तमन्ना   हमारी

तेरी दृष्टि की एक लहर चाहता हूँ

 

बहुत ठोकरें मैनें खाया जहाँ में

नहीं कोइ दूजा भँवर चाहता हूँ

 

जो माँगो वो मिलता है चौखट पे तेरे

सदा भक्ति तेरी अमर चाहता हूँ

 

करो मेरा उत्साह बर्धन प्रभू अब

क्षमा मै तुम्हारा ही दर चाहता हूँ

 

©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज               

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