लेखक की कलम से

इतिहास गढ़ेंगें फिर मानव …

 

बून्द बारिश से लपट आग जब उठने लगेंगे अपने आप ।

पिघलती मोम से पत्थर शिला जब बनने लगेंगे अपने आप।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर करेगा संख नाद।

मानव के कर्मो से फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

जब नदी के उस धरा को मोड़ देगा अथक प्रयाश।

सागर के उस लहर को मौज बना खे लेगा नाव।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर करेगा संख नाद।

मानव के कर्मो से फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

 

मेमने का वह गरज भी चुप करा देगा वो दहाड़।

पत्थरो को चीरकर जब बनेगा स्वच्छ राह।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर करेगा संख नाद।

मानव के कर्मो से फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

कर्ज़ उतारते किसी हरिश्चन्द्र को विकना  पड़े जब सपरिवार।

या कोई भीष्म जब  राष्ट्र रक्षा में स्वाहा करे अपने को आप।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर करेगा संख नाद।

मानव के कर्मो से फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

मेघ का गर्जन डराता और  दिग्भ्रमित करता वो तिमिरतोम।

अन्तर्मन के उस उल्लास में अवसाद भरता वो तिमिरतोम।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर उठता संख नाद।

मानव के कर्मो से हीं फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

अंधकार के उस अँधियारे में जगमग है वो चंद्रप्रकाश।

अरुण छटा की धवल किरण लेकर आएंगे नव प्रकाश।।

 

सीना चीर उस शैल शिखर का जब फिर निकालेगी वो पवित्र धार।

मानव मन के कलुषित विचार को  धोकर जाएगी वो पवित्र धार।।

 

तब मानव के आत्म बल का शोर करेगा संख नाद।

मानव के कर्मो से फिर इतिहास गढ़ेगा अपने आप।।

 

फिर मानव मन मे नव अंकुर निकालेंगे  द्वेष का करके परित्याग।

नव ऊर्जा एकत्रित कर मानव  गढलेंगे एक नया इतिहास।।

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद                                                                

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