लेखक की कलम से

संदेशा …

सरहद पर सिपाही को
मिलता जब संदेशा
आंखें भर जाती
गांव की याद जब – जब है आती
न जाने बूढ़ी मां कैसी होगी?
पिताजी को मेरी याद तो आती होगी!
बीबी मेरी बच्चे को अकेले ही पालती होगी
जाने अनजाने मेरी राह
छुप छुपकर देखती होगी।
संदेशा भेजे कि बोलो कब आओगे?
धरती मां के खातिर क्या इस मां को भूल जाओगे?
पिता की लाठी मांगे है सहारा।
पर क्या बोलूं प्रिये
सरहद पर देश की रक्षा करना है कर्तव्य मेरा
चाहे हो जाऊं शहीद
पर मुंह न मोड़ के जाऊंगा
मुझे भी याद तो आती है
दिल को बहुत तड़पाती है
सपनों में तुम सबसे मिल लेता हूं
प्यारी – प्यारी बातें बच्चों से कर लेता हूं
संदेशा जब तेरा आता है
जोश मुझमें और भी बढ़ जाता है
दुश्मनों को रौंदने की ताकत आ जाती है
तुम सब तो मेरी ताकत हो
संदेशा कहती सब कुशल हैं
धरती मां को मेरी जरूरत है।।

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा

Back to top button