अब की सीता …
ये नई सीता है राम
जिसे तुम्हें आज जानना है
जिसे तुम जानते थे,
वह आज भी वही पवित्र चौपाई है
लखन की माता समान भोजाई है
जिसे तुम्हे जानना है
वह इस बार चुपचाप तुम्हारे पीछे वन नहीं जाएगी
तुमसे प्रश्न करेगी
अपने अधिकारों के लिए
कुटुंबियों से जिरह करेगी
मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं
आम सा ,
पर उसके लिए एक जिम्मेदार पति बनने को कहेगी
इस बार वह विधि के विधान का साधन नहीं बनेगी
और तुमसे स्वर्णिम हिरण भी नहीं मांगेगी
क्यूंकि ये सीता खुद में समर्थ है हर तरह से
भावनात्मक और आर्थिक रूप से
समर्थ रहूंगी
तो न तुम्हें सुनहरे हिरण के पीछे भेजूंगी
और न कोई रावण ‘भिक्षाम दे हि, भिक्षाम देहि कह कर मेरा शील भंग करने का दुस्साहस नहीं करेगा
कोई जटायु क्यों अपने पंख नुचवाए ,
सीता को सदियां क्यों उलाहना सुनवाएं
अशोक वाटिका में क्यों तिनके की आड़ में रावण से अपना सतीत्व बचाए ?
बेचारी बन ,
राम के आने की बाट न जोहे , खुद उस पापी को आड़े हाथों ले ओर खरी खरी सुनाएं?
सीता अबला नहीं है राम
बस, रिश्तों को गांठें मजबूत करने में
तुमको सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने में
कई दफा खुद को हीन बनाती आई हे ।
हे राम!
परिवर्तन तो संसार का नियम है
तो इस रामायण
को नए सिरे से लिखते हैं
कोई धोबी तुमसे कुछ भी कहे
तुम अपनी सीता को अपने राम से कभी अलग मत होने दो
सीता को अपनी बात कहने दो
सीता को अपनी बात कहने दो?
©सुदेश वत्स, बैंगलोर