अब और नहीं…
कब तक यूँ शब्दों से भ्रास निकालेंगे,
दरिंदों को कब तक हम और पालेंगे,
कब तक उनको यूँ दरिंदगी करने देंगे?
बस बहुत हुआ अब मोम से प्रतिकार,
उठाकर हमें कोई प्रलयंकारी हथियार
करने होंगे उन दुष्ट दानवों पर घातक वार।
काट डाले टूकरों में उनके अंग दो चार
जिन्हों ने छीना उनसे जीने का अधिकार
जो बस अभी हुये थे चलने को तैयार;
क्यूँ हम ऐसे हैवानों को पनाह देते हैं,
जो घिनौने मनसूबे छिपाकर रखते हैं,
क्यूँ न उन शैतानों को औरत के दर्द देते हैं?
कोई बताये उस शैतान की जननी को,
जिसने कोख में पाला खूनी नेवले को
अभिशाप बनकर बेखौफ रौंदता है जो
कितनी ही निरीह कलियों और फूलों को;
जो किया सो किया अब पाप धोने को,
झूठी ममत्व भूला, मार दे खूनी संतान को।
कितने कुकर्मों पर हम बस यूँ ही बौखलायेंगे
जगह-जगह कितनी ही मोमबत्तियाँ जलायेंगे
दो-चार गालियाँ देकर फिर चुप हो जायेंगे?
यूँ ही अगर इन वारदातों को भूलते जायेंगे
निर्दयी दानव कितने निर्भयों को खा जायेंगे,
और हम बस मोमबत्तियाँ जलाते रह जायेंगे।
अब और नहीं, इन कपूतों को हम दिखायेंगे
कि कैसे चील कौवे इन्हें ही नोंच नोंच खायेंगे
और हम कोई और मातम नहीं, जश्न मनायेंगे।
सामने खड़े भेड़िये पर हम इतना चिल्लायेंगे
कि कान ही नहीं, रोंगटे भी उसके मुकर जायेंगे
सशक्त प्रहार से उसे तिलमिला कर छोड़ेंगे।
एक एक बेटी को हम इतना सशक्त बनायेंगे
कि वह हर हरामी का सही जवाब दे पायेंगे;
हर बेटे में ऐसी भावनाओं को हम जगायेंगे
जो अन्याय के आगे सर न कभी अपना झुकायेंगे
हर बहन की पुकार पर सब छोड़ दौड़ते आयेंगे
हाथ से हाथ मिला सभी राक्षसों का सामना करेंगे।
तो अब बस, और रोना नहीं,
राक्षसों को रूलाना है
सबको एकजुट होकर
उसको उसकी औकात बताना है।
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हिंदी व अंग्रेजी में लिखने पढ़ने का शौक। ‘प्रेम के रहस्यमयी रंग’ नाम से एक काव्य पुस्तिका संकलित कर प्रकाशित कर चुकी हैं।