लेखक की कलम से
नौ दिन की पूजा नहीं, उम्रभर की इज्जत चाहिए …
शुक्र मानो बराबरी चाहते हैं
बदला नहीं, खिताब चाहते हैं
मुशाक्खत नहीं, मिसाल चाहते हैं
मलकीयत नहीं, प्यार चाहते हैं
हिमाकत नहीं, इज्जत चाहते हैं
पूजा नहीं, बराबरी चाहते हैं
नीलामी नहीं, विश्वास चाहते हैं
धोखा नहीं, एक नेक दिल चाहते हैं
हजारों नहीं, लाखों लोगों में ठहाके लगाते हैं
पर नारी शक्ति की क्षमता पर संदेह नहीं
प्यार नहीं तो दर्द नहीं, विश्वास नहीं तो दिखावा नहीं
नौ दिन की पूजा नहीं, उमर भर की इज्जत सही …
© हर्षिता दावर, नई दिल्ली