स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बनाया ‘हिंदू स्वाभिमान सर्वोपरि’…
आखिरकार 10 दिसंबर, 2021 को एक नया इतिहास रच ही डाला। सनातन धर्म ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष के इतिहास में यह दिन स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया। ऐसा पहली बार हुआ जब भगवा ध्वज के अपमान के बदले पूरे विश्व का सबसे ऊंचा भगवा ध्वज फहराया गया।
कवर्धा में फहरा यह भगवा ध्वज एक सामान्य ध्वज नहीं है बल्कि एक करारा तमाचा है उन लोगों के मुंह पर जो कि अन्य धर्मों के अपमान को अपनी शान समझते हैं। वीरता, शौर्य, बल, साहस जैसे गुणों का प्रयोग आजकल कुछ लोग धर्म का अपमान करने में ही करते हैं। ऐसे लोगों को जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दंडी शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अच्छा सबक सिखाया है।
विगत तीन अक्टूबर को कवर्धा में दुर्गेश देवांगन को जिस तरह पीटा गया, उसे साधु संतों ने हल्के में नहीं लिया। जिस तरह आज 10 दिसंबर को कवर्धा में चारों पीठों के शंकराचार्य के प्रतिनिधि, तेरह अखाड़ों के आचार्य और सभी सनातन मार्गी आचार्य और उनके प्रतिनिधि साधु, दंडी संन्यासी आदि सम्मिलित हुए, वह बता रहा है कि सच्चे अर्थों में हिंदू अब जागृत हो रहा है।
सत्य तो यह है कि लंबे समय से हिंदुओं की जिस सहनशीलता को उनकी कायरता कहकर अपमानित किया जा रहा था, आज साधु-संतों ने सिद्ध कर दिया कि वह उनका गुण है। साधु संतों ने यह दिखा दिया कि सहिष्णुता की यदि अधिक परीक्षा ली जाए तो वे अपना प्रचंड तेजस्वी रूप दिखाने में भी पीछे नहीं हटेंगे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की अगुवाई में हुए कवर्धा के ध्वजारोहण कार्यक्रम में सिद्ध कर दिया कि संत ही सनातनी संस्कृति समाज को सही दिशा दे सकते हैं।
यहाँ यह बताना आवश्यक हो जाता है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद वही हैं जिन्हें उनके विरोधी अब तक ‘असफल आंदोलनों का संन्यासी’ कहते थे। काशी में मूर्ति विसर्जन को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर हुए लाठीचार्ज पर आज भी राजनीति चल रही है। उत्तराखंड में माता पूर्णाम्बा के बंद कपाट को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने जो अनशन किया वह व्यापक आंदोलन में न बदल सका। इसी प्रकार काशी के पौराणिक मंदिरों को लेकर भी उन्होंने बड़ा आंदोलन छेड़ा, लेकिन परिणाम कुछ न निकला। कुछ वर्षों पूर्व गौ रक्षा के लिए भी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती एवं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में तमाम साधु-संतों ने अनशन किया किंतु तत्कालीन सरकार ने संतों को एक बार फिर छला। यह सब आन्दोलन चर्चित तो खूब हुए उनका परिणाम संतों के मनोनुकूल ना निकला। पर आज इस विश्व के सबसे बड़े भगवा ध्वज को फहराकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सबके मुंह सिल दिए।
अब ना तो विधर्मी ही सनातनी को चिढ़ाने की स्थिति में बचे हैं, ना ही सनातन धर्म और साधु-संतों को नकारने वाले स्वधर्मी ही। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की अगुवाई में हुए इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यह छद्म हिंदुत्व से एकदम अलग रहा। अभी तक हिंदुत्व के नाम पर मात्र जनता की भावनाओं से खिलवाड़ होता आया था। वरना धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में किसकी मजाल है कि विश्व की सबसे प्राचीन धर्म के प्रतीकों का अपमान करे, किसका सामर्थ्य है कि सबके आश्रयदाता देश की धरती पर सबसे प्राचीन धर्म की मान्यताओं का उपहास करे। अभी तक सोशल मीडिया पर जो लोग सनातनधर्मियों और साधु- संतों को कायर, नपुंसक जैसे शब्द कहते आए थे, सनातन देवी- देवताओं, नारियों और संतों के लिए अपशब्द कहते ना थके थे, उनके लिए सबसे बड़ा उत्तर बन गए हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद।
सचमुच स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आपने प्रमाणित कर दिया हिंदू स्वाभिमान सर्वोपरि, हिंदू धर्म सर्वोपरि, हिंदू सम्मान सर्वोपरि और हिंदू संत सर्वोपरि। आज मात्र प्रत्येक हिंदू को ही नहीं बल्कि प्रत्येक हिंदू धर्म के विरोधी को भी पता चल गया है कि नरसिंह अवतार, तांडव करते भगवान शिव, फरसाधारी भगवान परशुराम, धनुर्धारी भगवान राम और शिशुपाल का वध करने वाले श्रीकृष्ण अतीत की बात नहीं हुए हैं।
-डॉ. दीपिका उपाध्याय, आगरा, (लेखिका एक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)