लेखक की कलम से

ठंडी हवा …

 

ठंडी हवाएं बहने लगी है।

पास आकर कुछ कहने लगी है।

कभी ये गुदगदाती हमको।

कभी छेड़ कर जाती है।

 

कभी ये हिलाती आंचल।

कभी जुल्फ लहराती है।

कभी एक जाम के साथ।

मन के तार हिलाती है

 

कभी चलती पूर्व दिशा से।

कभी पश्चिम से आती है।

शिशिर ऋतु के साथ साथ।

ये ठंड लेकर आती है।

 

कभी खेलती प्रकति के संग।

कभी गोद में सो जाती है।

सर-सर करती हवा ये चलती।

सबको गले लगाती हैं।

 

©नीना गुप्ता, हिसार, हरियाणा             

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