लेखक की कलम से
मैं तुझ बिन अधूरी …
तू वक्त तो नहीं
जो बदल गया
तू समय भी नहीं
जो निकल गया
मेरा खाविंद है
ज़रा तो ठहर जा।
तू चाँद तो नहीं
जो रोज़
थोड़ा-थोड़ा बढ़ेगा
मेरा प्यार है
इक बार में ही बरस जा।
तू ख्वाब तो नहीं
जिसे देखूँ और भूल जाऊं
तू मेरी तमन्ना है
मेरी आरज़ू है
मेरी चाहत है
मेरी उम्मीद है
भला तुझे कैसे बिसराऊँ?
तू दीपक है मेरा
जलता हुआ
मैं रूप हूँ इक़
ढलता हुआ।
तू कान्हा मेरा
मैं रुक्मिणी तेरी
नहीं बनना मीरा तेरी।
तू आज है मेरा और
कल भी रहेगा
जब तक सूरज-चाँद रहेगा।
आकाश मेरा तू
मैं धरा तेरी
तू साज़ मेरा
मैं वीणा तेरी
तू रखना अपना
हाथ यूँ ही
तू मुझ बिन अधूरा
मैं तुझ बिन अधूरी।
©डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़