लेखक की कलम से

निशा सुंदरी …

निशा सुंदरी चल दी नभ से,

लेकर तारों की गगरी।।

 

छाई स्वर्णिम भोर जगत में,

जाग गयी दुनियाँ सगरी।

 

शत दल भी फिर खिले झूम के,

प्रफुल्लित उपवन नगरी।

 

सुरभित हो नभ मंडल फूला,

धूम मची डगरी डगरी।।

 

तुमभी भज लो राम नाम मन,

जिंदगानी बीती सब री।।

 

©स्वर्णलता टंडन

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