लेखक की कलम से

यादें पुरानी नहीं है मेरी …

दर्द ए दिल की जुबानी नहीं है मेरी

दास्तान है पूरी कहानी नहीं है मेरी

 

मेरे अश्कों में ही गमों का है समंदर

किस्सा कोई तर्जुमानी नहीं है मेरी

 

खिली धूप में भी आलम गम का है

बहार अब कोई सुहानी नहीं है मेरी

 

अब तो सिर्फ तन्हाई रास आती है

अब भी यादें पुरानी नहीं है मेरी

 

क्या कहा करते थे छोडूंगा न कभी

इसलिए आंखों में पानी नहीं है मेरी

 

 ढल गई उम्र भी इंतज़ार करते करते

ऐ हयात अब वो जवानी नहीं है मेरी …

 

 

©खुशनुमा हयात, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश 

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