लेखक की कलम से

राहुल की महाराष्ट्र पदयात्रा के मायने, सच में कोई फायदा है क्या ….

संदीप सोनवलकर वरिष्ठ पत्रकार । हाल ही में दिवंगत समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव निजी बातचीत मे अक्सर कहा करते थे कि नेता तब तक ही सामयिक है जब तक उसके बारे में चर्चा और पर्चा दोनों होते रहे .. यानि मीडिया में खबर छपे और लोगों मे चर्चा हो . नेता जी ये बात अपने ठेठ अंदाज में कही थी लेकिन राजनीती का यही सौ आने सच है .. ये सच अब शायद राहुल गांधी ने समझ लिया है. लगातार हार के बाद मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में ट्रोल होने के बाद राहुल गांधी को समझ में आ गया है कि अगर उनको लोगों के बीच अपनी छवी बदलनी है तो कुछ तो करना ही होगा . इसलिए ही वो भारत यात्रा पर निकल पड़े है .

असल में नेशनल मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल करके राहुल की छवि एक नासमझ युवा और राजनीति में बेमन से शामिल राजपुत्र की बना दी गयी .ऊपर से बार बार ही हार , कांग्रेस की आपसी कलह. राहुल का अचानक छुटटी पर चले जाना सब इसमें तड़के लगाता रहा इसलिए बीजेपी और उनके समर्थक राहुल के बारे में सब सही गलत कहते रहे और धीरे धीरे उनकी छवि नाकारा और नासमझ की बना दी गयी . मजे की बात ये कि राहुल ने जब इसे बदलने के लिए कोशिश करना शुरु किया तो चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर ने ही अपने प्रेजेंटेशन में इस भारत ज़ोड़ो यात्रा का नाम और पूरा फ्रेमवर्क दिया था .. किशोर इसे खुद लागू करना चाहते थे लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया और राहुल खुद यात्रा पर निकल पड़े .

अब जाहिर है कदम कदम पर इसका सवाल किया जा रहा है कि क्या राहुल की यात्रा के फायदे होंगे या फिर सिर्फ दिखावा है . राहुल अब भी नेशनल मीडिया पर तभी दिख रहे है जब कोई विवादित बयान दे रहे हैं लेकिन इस यात्रा के जरिये सोशल मीडिया पर जरुर छाये हुये हैं.असल में सोशल मीडिया की मजबूरी यही है कि इसमें नया कंटेंट हो तभी उसे लोग देखते हैं. पीए मोदी प्रिंट से लेकर नेशनल मीडिया पर लगातार छाये रहते हैं ऐसे में उनको सोशल मीडिया पर भी देखना बोर करता है .नया युवा जो तुरत फुरत कमेंट और लगातार बदलाव चाहता है उसे राहुल का ये अंदाज लुभा रहा है . उसे राहुल की टी शर्ट से लेकर किसी का भी हाथ पकडकर चलना बुरा नहीं बल्कि सही लग रह है .कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार सही कह रहे है कि ये चुनावी नहीं राजनीतिक यात्रा है इस यात्रा का चुनाव में अभी फायदा भले तुरंत नहीं मिले लेकिन लगातार चर्चा के कारण कांग्रेस को राजनीतिक फायद जरुर मिलेगा .

अभी राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पहले खुद की छवी बदले और पार्टी की राजनीतिक सामयिकता बनाये रखे ..  ये यात्रा दोनों मायने में उनके लिए फायदे मंद है .. पहला तो ये कि वो रोज नया कंटेंट दे रहे है जिसे खूब देखा जा रहा है दूसरा पार्टी के उस कैडर से मिल रहे है जो लगातार हार के कारण निराश हो चुका था .जरुरत सिर्फ इतनी है कि राहुल इस यात्रा के बाद भी इसी तरह मिलते रहे तो बहुत कुछ हो सकता है.

जहां तक महाराष्ट्र में राहुल की यात्रा का सवाल है तो वो राज्य में 13 दिन बिता रहे है जिसमें वो मराठवाड़ा , विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र के इलाकों से निकलेगे.. यहां बहुत राजनीतिक फायदा अभी तब दिखेगा जब चुनाव होगा लेकिन यात्रा के बहाने ही सही राहुल गांधी महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं को एक साथ लाने में तो कामयाब हो ही गये है. इतना ही नहीं सरकार जाने के बाद भी गठबंधन को आगे चलाने के लिए जरुरी संवाद के तौर पर वो शऱद पवार , सुप्रिया सुले और आदित्य ठाकरे के साथ भी बात कर चुके है  .इससे ये संदेश तो गया है कि ये गठबंधन आगे भी चलता रहेगा .इसका फायदा तुरंत के तौर पर स्थानिय निकाय चुनाव में मिल सकता है. इसके साथ ही अगले चुनाव की तैयारी की ऊर्जा भी पार्टी के कैडर को मिल सकती है.

राहुल की पदयात्रा से इतना तो साफ दिख रहा है कि बीजेपी को समझना होगा कि अगर राहुल अपना और पार्टी के लिए लोगों को नजरिया बदलने में कामयाब हो जाते है तो लोकसभा के चुनाव आते आते कांग्रेस राष्ट्रीय तौर पर फिर से अपनी खोई हुयी जमीन पर कुछ फसल उगाने में कामयाब हो सकती है .

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