लेखक की कलम से
मुझे दौड़ में कछुआ पसन्द है …
मुझे दौड़ में कछुआ पसन्द है,
हाँ, वही कछुआ जो खरगोश के साथ दौड़ा था ,
इसलिए नहीं कि वो प्रथम आया था ,
इसलिए भी नहीं की महत्वाकांक्षी था ,
इसलिए क्योंकि उसकी सोच जीत – हार से परे थी ,
इसलिए क्योंकि वो हारने वाले दौड़ में हिस्सा लेने से नहीं डरा ,
इसलिए क्योंकि वो खरगोश की दौड़ने की शक्ति से नहीं डरा ,
इसलिए क्योंकि उसने अपनी कमजोरी का रोना नहीं रोया ,
इसलिए क्योंकि कछुए को सिर्फ चलना था , निरतंर , अपने लक्ष्य की ओर ,
तब तक , जब तक की अपने ख्वाब को पूरा न करले ।
कछुआ जानता है उसमें दौड़ की काबिलियत नहीं है , पर वो जीत गया है ,
बता रहा था अब वो बड़े खरगोश से भी दौड़ में होड़ लेगा ,
असंभव से दिखने वाले कार्य अब उसे सम्भव लगने लगे हैं,
इसीलिए मुझे दौड़ में कछुआ पसन्द है ।।
©प्रीति सुमन , मुंबई