धर्म

शिव-पार्वती का अद्भुत अनोखा विवाह कैसे हुआ था संपन्न? कौन बने थे साक्षी

 सुखी वैवाहिक जीवन के लिए हिंदू धर्म में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है. सुहागिन महिलाएं गौरी की पूजा कर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. कुंवारी कन्या 16 सोमवार, शिवरात्रि और महाशिवरात्रि जैसे व्रत रखकर शिव के समान पति पाने की इच्छा रखती हैं. वहीं पुरुष भी धर्मपत्नी के रूप में देवी पार्वती जैसी संगिनी चाहते हैं.

शिव पार्वती के वैवाहिक जीवन और प्रेम कहानी का उदाहरण आज भी दिया जाता है. इसका कारण है दोनों का अनोखा संगम, एक दूसरे के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण की भावना. लेकिन यह संगम आसान नहीं था. शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती जी ने वर्षों तक कठोर तप किए. वहीं शिवजी भी सदियों तक विरह की आग में तपते रहे और आखिरकार शिव पार्वती का संगम युगों-युगांतर के लिए हो गया.

कैसे संपन्न हुआ शिव-पार्वती का विवाह

पुराणों में शिवजी और माता पार्वती के विवाह को लेकर कई कथा-कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि शिव-पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के पावन दिन पर संपन्न हुआ था. लेकिन दोनों का विवाह भी आसान नहीं था. शिवजी जब माता पार्वती से विवाह रचाने बारातियों के साथ उनके द्वार पहुंचे तो एक बार फिर से विवाह में अड़चन आ गई. आइये जानते हैं कैसे संपन्न हुआ शिव-पार्वती का विवाह.

पार्वती जी  राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री थीं, जोकि महादेव को अपने पति के रूप में मान चुकी थी और उन्हीं से विवाह करना चाहती थी. लेकिन शिव को पति के रूप में पाना इतना आसान कहां था. लेकिन पार्वती जी ने भी हार नहीं मानी और वर्षों तक कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया और विशाल पर्वत भी डगमगाने लगे. तब सभी देवतागण महादेव के पास पहुंचे और इस समस्या का हल निकालने की विनती की.

पार्वती जी कठोर तपस्या हुई सफल

पार्वती की कठोर तपस्या से महादेव भी प्रसन्न हुआ. लेकिन शिवजी ने पार्वती को दर्शन देकर कहा कि, वो किसी राजकुमार के साथ विवाह कर लें. पार्वती जी ने इससे इंकार कर दिया और बोली कि वह तो मन ही मन महादेव को अपना पति मान बैठी हैं. इस तरह से शिवजी भी विवाह के लिए मान गए. पार्वती के पिता हिमवान भी शिव पार्वती के विवाह के लिए राजी हो गए.

भूत-प्रेतों की बाराती लेकर विवाह रचाने पहुंचे शिव

शिव पार्वती के विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वती जी से विवाह रचाने के लिए शिवजी बारातियों से साथ पहुंचे. उनके साथ बाराती में भूत-प्रेत और चुड़ैल भी थे. वहीं दूल्हा बने शिवजी ने भस्म से श्रृंगार किया था और हड्डियों की माला पहनी थी. भूत-प्रेतों की बाराती और शिव का श्रृंगार देख सभी दंग रहे. पार्वती जी की मां मैनावती ने इस विवाह से साफ इंकार कर दिया. तब पार्वती जी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे विवाह के रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए तैयार हो जाएं. इसके बाद देवताओं ने शिवजी का श्रृंगार किया और इसके बाद शिवजी का सुंदर दिव्य रूप रूप देख सभी प्रसन्न हुए. फिर माता पार्वती और शिवजी का विवाह हुआ. इस तरह से शिव-पार्वती के विवाह में बाराती के रूप में देवतागण के साथ ही भूत-प्रेत और चुड़ैल आदि सभी शामिल हुए और इनकी मौजूदगी में ही शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ.

शिव को पाने के लिए मां पार्वती का दृढ़ संकल्‍प

माता पार्वती भगवान शिव को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। वह दृढ़ संकल्पित थीं कि विवाह करेंगी तो भोलेनाथ के साथ ही करेंगी। उधर देवता भी यही चाहते थे। देवताओं ने माता पार्वती के विवाह का प्रस्‍ताव कन्‍दर्प से भगवान शिव के पास भेजा। जिसे भोलेनाथ ने ठुकरा दिया और उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्‍म भी कर दिया। लेकिन माता इससे भी विचलित नहीं हुईं और कठोर तपस्‍या शुरू कर दी।

शिव को इस तरह मनाया देवी पार्वती ने

देवी पार्वती की तपस्‍या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। बडे़-बड़े पहाड़ डगमगाने लगे। देवता भी मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। भोले बाबा भी पार्वती के तप से प्रसन्‍न हुए और उन्‍हें दर्शन देकर कहा कि वह किसी राजकुमार से विवाह कर लें। उन्‍होंने कहा कि उनके साथ रहना आसान नहीं होगा। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि वह उन्‍हें ही अपना पति मान चुकी हैं। अब उनके सिवा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। पार्वती के इस असीम प्रेम को देखकर भोलेनाथ विवाह के लिए मान गए।

माता को ब्‍याहने ऐसे पहुंचे भोलेनाथ

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव जब माता पार्वती को ब्‍याहने पहुंचे तो उनके साथ संपूर्ण जगत के भूत-प्रेत थे। इसके अलावा डाकिनियां, शाकिनियां और चुड़ैलें भी शिव जी की बारात में शामिल थीं। उन्‍होंने ने ही भोलेनाथ का भस्‍म से श्रृंगार किया। हड्डियों की माला पहनाई। इस अनोखी बारात को देखकर तो रानी मैना देवी यानी कि माता पार्वती की मां हैरान रह गईं। उन्‍होंने अपनी बेटी का विवाह करने से इंकार कर दिया।

देवी पार्वती ने ऐसे मनाया माता को

शिव के इस रूप को देखकर माता पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वह विवाह की परंपरा के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद भोलेनाथ ने उनकी विनती स्‍वीकार की और दुल्‍हे के रूप में तैयार हुए। उनके इस अनुपम सौंदर्य को देखकर रानी मैना देवी चकित रह गईं। इसके बाद सृष्टि रचयिता श्री ब्रह्मा जी की मौजूदगी में देवी पार्वती और भोलेनाथ का विवाह संपन्‍न हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव-पार्वती के विवाह की यह तिथि ही महाशिवरात्रि कहलाई।

इसलिए महत्‍वपूर्ण है महाशिवरात्रि

मान्‍यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने से भक्‍तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कुंवारी कन्‍याओं को मनचाहा वर मिलता है। इसके लिए विद्वानजन बताते हैं कि कुंवारी कन्‍याओं को इस दिन नित्‍य कर्म से निवृत्‍त होकर व्रत करना चाहिए। इसके बाद किसी भी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां पर शिव-पार्वती एक साथ विराजते हों। पार्वती जी को सुहाग का समान अर्पित करते हुए पार्वती और शिव को लाल रंग कलावे से 7 बार बांध देना चाहिए। इसके बाद शीघ्र विवाह की प्रार्थना करनी चाहिए। वहीं सुहागिन स्त्रियों को इस पूजा से अखंड सौभाग्‍य का वरदान मिलता है।

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