धर्म

ढृढ़ संकल्प लेने पर मां नर्मदा कराती है परिक्रमा, शिव प्रिय मैंकल शैल सुतासि, सकलसिद्ध सुख संपति राशि …

नर्मदा परिक्रमा भाग – 2

अक्षय नामदेव। वर्ष 2019 मैं उत्तराखंड चार धाम यात्रा के दौरान मां नर्मदा के परिक्रमा करने की जो योजना बनी थी उसको मूर्त रूप देने का समय नहीं बन पा रहा था। शारीरिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं कि स्वयं आगे होकर अकेले नर्मदा परिक्रमा करने का निर्णय ले सकूं। पिछले वर्ष 2020 मार्च में लॉकडाउन के दौरान जालेश्वर महादेव तीर्थ अमरकंटक पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र के महंत ज्ञानेश्वर पुरी ने पढ़ने के लिए एक किताब दी तपोभूमि नर्मदा। तपोभूमि नर्मदा के लेखक थे शैलेंद्र नारायण घोषाल शास्त्री। उन्होंने वर्ष 1952 में लगातार 6 वर्षों तक मां नर्मदा की परिक्रमा करने के बाद 1986 से 1992 के वर्षों में तपोभूमि नर्मदा किताब का प्रकाशन कराया जिसकी एक कड़ी मुझे पढ़ने को मिली। पिछले लॉकडाउन 2020 के दौरान इस किताब ने आग में घी डालने का काम किया और इसने मां नर्मदा के प्रति मेरी आस्था और जिज्ञासा को और बढ़ाया तथा किताब पढ़ते पढ़ते एक बार फिर मेरी मां नर्मदा की परिक्रमा करने की इच्छा बलवती हो गई पर अपनी इच्छा भर से क्या होता है। माता जो चाहती है वह करती है जब चाहती है तभी बुलाती है।

10 मार्च 2021 को स्कूल में रहने के दौरान अचानक मोबाइल की घंटी बजी। फोन उठाया तो उधर से बिसेन चाची की आवाज आई नन्हा नर्मदा परिक्रमा में नहीं चलना है क्या ? मैंने कहा चाची चलना तो है पर कब ? अभी तो स्कूल के बच्चों की परीक्षा होनी है। चाची बोली छुट्टी ले लो इसी हफ्ते चलो ! मैंने कहा चाची मैंकला की परीक्षा 19 मार्च तक है। इसके बाद ही कुछ सोच सकते हैं। चाची ने कहा, कुछ और लोग भी नर्मदा परिक्रमा जाने की इच्छुक हैं तुम हां करो तो कार्यक्रम तय हो जाए। मैंने कहा, घर जाकर निरुपमा से विचार-विमर्श कर लूं। घर पहुंचकर मां नर्मदा परिक्रमा के कार्यक्रम के बारे में निरुपमा से बताया तो वह सहर्ष तैयार हो गई। उसने कहा 19 मार्च के बाद कभी की भी तारीख निश्चित कर लो। “अंधा क्या चाहे, दो आंख”, निरुपमा की हरी झंडी मिलने के बाद में बिसेन चाची से कह दिया कि चाची 19 मार्च के बाद जब आप कहे मैं जाने को तैयार हूं। चाची ने कहा फिर 20 मार्च को क्यों नहीं? मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि ठीक है आप बाकी साथियों को तैयार रहने के लिए कहे मैं भी तैयारी कर लेता हूं।

आनन फानन में मैं अपने जरूरी काम निपटाने लगा। अर्जित अवकाश की स्वीकृति, बैंकिंग लेनदेन तथा अपने निजी सहायक पुक्कू के रहन-सहन की व्यवस्था। पुक्कू भाई अपने माता-पिता के निधन के बाद से मेरे साथ ही रहता है और परिवार के सदस्य जैसा हो गया है। उसे घर की रखवाली की जिम्मेदारी देकर जाना था। हम परिक्रमा जाने की तैयारी में जुटे थे और वह हमारे घर से बाहर जाने की तैयारी देख कर कुछ उदास और भारी भारी था। इन सबके बीच मुझे मां नर्मदा की परिक्रमा करने के लिए पिताजी की स्वीकृति चाहिए थी। सुबह सवेरे नर्मदा कुंज जाकर पिताजी को बताया-नर्मदा की परिक्रमा में जाना चाहता हूं। पिताजी भला क्यों इनकार करते। उनका नाम तो स्वयं रेवा है। मां नर्मदा के प्रति असीम भक्ति के कारण ही दादा भाई ने अपने बड़े पुत्र अर्थात हमारे पिताजी का नाम रेवा रखा था। पिताजी भी स्वयं मां नर्मदा के भक्त रहे हैं। मां नर्मदा और अमरकंटक तो जैसे उनकी रग-रग में बसा है। हम चारों भाइयों ने कितनी ही बार उनके साथ बचपन में अमरकंटक जाकर मां नर्मदा के प्रति उनकी भक्ति को महसूस किया है।थोड़ी बहुत जानकारी लेने के बाद उन्होंने मुझे नर्मदा परिक्रमा जाने की स्वीकृति प्रदान कर दी तथा शाम को स्वयं उन्होंने आकर आशीर्वाद स्वरुप कुछ धनराशि मुझे देने लगे। मुझे संकोच हुआ तो कहा यह राशि मैंकला बेटी को दे दीजिए। मेरे सपरिवार नर्मदा परिक्रमा जाने से पिताजी भाव विहल थे। देखा उनकी आंखों में आंसू थे। उनकी भावुकता से मैं परिचित रहा हूं। मैंने उनका मन बढ़ाते हुए कहा आप बिल्कुल भी चिंता ना करें। हम ठीक से सुरक्षित यात्रा करेंगे।बहरहाल हमारी मां नर्मदा परिक्रमा जाने की तैयारी पूरी हुई। इस बीच मैंने अपने शुभचिंतक एवं मार्गदर्शक राम निवास तिवारी से भी मां नर्मदा परिक्रमा चलने का आग्रह किया। अपने परिवार की स्वीकृति के बाद वे भी मां नर्मदा की परिक्रमा जाने तैयार हो गए।

इस तरह हम 14 सदस्य जिसमें राम निवास तिवारी, स्वामी कृष्ण प्रपन्नाचार्य महाराज जिन्हें हम कामता महाराज कहते हैं, घनश्याम सिंह ठाकुर झिरना, श्रीमती सरोज बाला झिरना, श्रीमती मधु ठाकुर बिजुरी, कुमारी कल्पना ठाकुर झिरना, श्याम लाल केवट धोबहर, श्रीमती गंगोत्री गौरेला, श्रीमती लीला बिसेन पेंड्रा, श्रीमती विद्यावती गुप्ता बहन पेंड्रा, श्रीमती अनुसुइया चतुर्वेदी पेंड्रा, पत्नी श्रीमती निरुपमा नामदेव, बेटी कुमारी मैंकला नामदेव और मैं स्वयं। यात्रा शुरू करने के दिन मैं पुत्री मैकला और पत्नी निरुपमा के साथ पहले नर्मदा कुंज पहुंचे।पिताजी सहित तीनों भाइयों, भाभियों, भतीजे भतीजियों एवं परिजनों से आशीर्वाद एवं शुभकामनाएं लेकर हम नर्मदा कुंज से अमरकंटक की ओर रवाना हुए। इस बीच मां की कमी महसूस होती रही। सोच रहा था वह होती तो कितना खुश होती?

हम 14 परिक्रमा वासी 3 अलग अलग गाड़ियों में सवार होकर पूरी तैयारी के साथ मां नर्मदा परिक्रमा करने की इच्छा से पेंड्रा से रवाना हुए और सीधे मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक स्थित जालेश्वर धाम पहुंचे। तारीख थी 20 मार्च 2021 दिन शनिवार। मां नर्मदा परिक्रमा करने पहुंचे सभी साथियों का जलेश्वर धाम तीर्थ के महंत ज्ञानेश्वर पुरी महाराज एवं व्यवस्थापक राजेश अग्रवाल ने आत्मीय स्वागत किया। जालेश्वर धाम तीर्थ में पूजा अर्चना के बाद हम सभी माई की बगिया अमरकंटक पहुंचे जहां से मां नर्मदा परिक्रमा करने का संकल्प लेकर परिक्रमा शुरू करनी थी।

माई की बगिया मां नर्मदा मंदिर अमरकंटक से पूर्व दिशा की ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर पर अत्यंत मनोरम प्राकृतिक स्थल है। साल वनों से आच्छादित माई की बगिया को मां नर्मदा का प्राचीन उद्गम माना जाता है। यहीं से मां नर्मदा गुप्त रूप से वर्तमान मां नर्मदा कुंड तक गई है तथा पश्चिम दिशा की ओर आगे पहाड़ों को चीरते हुए बढी है। माई की बगिया बगिया में गुलबकावली नामक सुगंधित पुष्प बहुतायत मात्रा में है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह पूर्व काल में सुंदर कन्या के रूप में मां नर्मदा की सहेली थी। माई की बगिया में मां नर्मदा का छोटा सा कुंड है जिसे चरणोंदक कुंड कहा जाता है। इसके अलावा हनुमान धारा नाम का जल स्रोत है जो पूर्व दिशा की ओर बह रहा है।

यहां मां नर्मदा के कुंड के ऊपर मां नर्मदा की सुंदर प्रतिमा विराजमान है। माई की बगिया मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक का प्रमुख तीर्थ है जो गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में स्थित है। यहां पहुंचने पर देखा कि पहले से ही यहां बड़ी संख्या में मां नर्मदा की परिक्रमा शुरू करने वाले एवं पूर्ण करने वाले परिक्रमा वासी पूजा अर्चना कर रहे हैं। अपनी बारी का इंतजार करने के बाद हम सभी 14 परिक्रमा वासी भी जो अरपा उद्गम बचाओ संघर्ष समिति पेंड्रा छत्तीसगढ़ के बैनर तले परिक्रमा करने पहुंचे थे भी नर्मदा की परिक्रमा का संकल्प लेकर विधि विधान से पूजा अर्चना की। पूजा अर्चना के दौरान माई की बगिया में बड़ी संख्या में उपस्थित बंदर अपनी उछल कूद मचा कर खुशी व्यक्त करते रहे। लगभग 1 घंटे में हमारी संकल्प पूजा पूरी हुई। माई की बगिया के पुजारी बड़े सज्जन एवं संतोषी हैं। उन्होंने हमें खूब आशीर्वाद दिया और हम नर्मदे हर के जयघोष के साथ मां नर्मदा की परिक्रमा में निकल पड़े। मां नर्मदा हमारे दाएं ओर थी अर्थात हम मां नर्मदा के दक्षिण तट की यात्रा कर रहे थे।

मां नर्मदा अमरकंटक के घाट निर्माणाधीन होने के कारण नर्मदा नदी में जल नहीं के बराबर था। नर्मदा की एक पतली धार का दर्शन करते हुए आगे बढे ।अरण्यी संगम में मां नर्मदा का दर्शन करने के बाद हम कबीर चौरा होते हुए करंजिया मार्ग की ओर बढ़े। धूप तेज थी परंतु सघन साल वन तेज धूप के प्रभाव को रोक रहे थे और हमारी सुखद आध्यात्मिक, अध्ययन यात्रा धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।

 हर हर नर्मदे

क्रमश:

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