लेखक की कलम से
बात करते थे कभी जुगनू हमसे …
ग़ज़ल
रात में ख़ामोश चाँद तनहा लगा
आप बिन ये जहाँ तनहा लगा
बात करते थे कभी जुगनू हमसे
क्या कहे हर फ़साना चुप लगा
एक मैं और ये ख़ामोश वक्त
पास आते एक ज़माना लगा
याद तेरी तड़पा रही रात दिन
भूलने का ना कोई बहाना लगा
जिस तरफ़ देखूँ तू दिखे मुझे
दिल को ढूँढ़ते एक ज़माना लगा
आशुफ्ता है जीस्त तुम बिन
समझने मुझको अरसा लगा
नाविना इश्क़ की लिखो ग़ज़ल
क्या कहे सदमा कैसा लगा
सामने बैठे बात भी नहीं हुई
सोचिए इस दिल को कैसा लगा
मुन्तज़िर मैं तेरी राहों की “सवि“
आते तुमको एक ज़माना लगा …
©सवि शर्मा, देहरादून