लेखक की कलम से
दो पहलू…
हम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
जो साथ चलते-चलते
पता नहीं कब जड़ दिए गए
एक ही सिक्के के दो पहलू बनाकर
जो मिले तो हैं पर दिशाएँ अलग-अलग।
एक होने के लिए
गलना और ढलना पड़ता है
तपती भट्ठी में/अंगारों में
बहना पड़ता है पानी-सा
जलना पड़ता है आग-सा
होना पड़ता है मिट्टी, रेत-सा
रखना पड़ता है
नभ और धरा को
एक ही मुट्ठी में बंद करके।
©डॉ. पान सिंह नवाँशहर, चंडीगढ़, पंजाब