लेखक की कलम से

एक सोच … कोरोना

 

 

एक डर  … का !!!!!???

संपूर्ण विश्व पर

मानवीय दिमागों पर हावी होना।।

 

जिस का नाम है … कोरोना

 

सोचता हूँ … ?

 

एक सभ्यता

एक समाज को ,

हर दिमाग की सोच को ,

 

जब रोकना हो  …!

आगे बढ़ने से  …?

 

तब अफवाह

और आधे सच से ,

जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं ।

 

तब कोरोना … नहीं मारेगा ।

 

हम अपने डर से ही मर जाते हैं।

 

तरक्कीयों -उच्चाइयों को ,

बढ़ते हुए कदमों को ,

एक बीमार ,

डरी सोच मार जाती है ।

 

कोरोना से तो ,

बच सकता था … विश्व

 

लेकिन मौत के डर से ,

जिंदगी बे -मौत मारी जाती है।

 

कोरोना का रोना ,

हर सोच को ,

डराकर हावी हुई जाती है ।

 

जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच, क्यों  … समझ नहीं पाती है?

 

अपने डर से ,

जब तक नहीं लड़ेंगे ।

 

जब तक विश्व के ,

पर्यावरण की,

सुध हम ही नहीं करेंगे ।

 

संपूर्ण विश्व के लिए ,

सबके …….

जीने की जिद्द नही करेंगे।

 

कोरोना … क्या करेगा ? मानव सभ्यता ,

डर से मुक्त हो ,

सदियों तक रहेगा।

©प्रीति शर्मा “असीम”, सोलन हिमाचल प्रदेश

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