लेखक की कलम से
शबनमी सुबह मुबारक
मन जिसका मजबूत होता, तन की परवाह नहीं करते
बिखर-बिखर कर निखरा करते
झंझावातों से कभी न डरा करते
पकड़कर साहस की डोरी शिखरों पर चढ़ा करते!
बैठी शबनम दूब पर किरणों को गले लगाये
आते-जाते राहगीरों को चमक-चमक लुभाये
शीतलता से धरती सींचे-सींचे फल और फूल
हाय निगोड़ी अंखियां मोरी
देख-देख तरसाय!