लेखक की कलम से

अनहद- नाद

कविता

तुम्हारा मौन मेरा मोह है

मौन को शब्द देने हैं

मेरी मोह कोई वक्ती आंधी है

मेरी नाभी की गहराई में

छिपी कस्तूरी हो

बावरीसी ढूंढ़ती फिरती

वो महकती खुशबू हो

तुम्हारे मौन में एक नाद है

 

हवन की भस्म हूं मैं

जितना तुम मलते हो अपने जिस्म पर

तुम्हारे रोएंरोएं में समा जाती हूं

उतर चुका है बहुत गहरे

भीतर तक तुम्हारा स्पर्श,

तुम्हारी बातें, तुम्हारी खुशबू

 

चरखा कातनेवाली उंगलियां

बस धागे के ख्याल में होती हैं

चरखे और कातनेवाली के बीच

वो धागा प्रेम का है

तुम चरखा मैं रूई

फिर मैं धागा हुई

महसूस हुआ अचानक

चरखा रहा

रूई

कातनेवाला खुद

वहां तो बस प्रेम था

©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा

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