लेखक की कलम से

मौन …

मौन का ये अर्थ यदि तुम समझो तो

शब्द सारे व्यर्थ ही लगने  लगते यहाँ

एक मौन सबको चुप कर जाए, तभी तो

मौन अपने मे समर्थ ओर सब कुछ व्यर्थ।

चीख़ चीख़ शब्द जो शब्द बनते

अपना असर जी कम कर जाते

शांत स्मित मौन होता स्थिर सदा

मौन की ही मार से शब्द सब बेचन हैं।

शब्द सीमित हो सकते है मगर

मौन तो विस्तार नही सही फिर सीमा कोई

बिन बोले ही छोड जाता प्रत्येक मौन अपने में

मौन में विश्राम से दिखता पर चलाया सदैव ही।

मौन में ही शक्ति है, अपार असीमित

मौन में ही भक्ति है,उमंग भरी

ध्यान में भी मौन है,तभी तो सम्भव हैं

मौन में विरक्ति है सभी की शक्ति है।

मौन में प्रेम और करुणा के भाव सारे

शांत रह तू मौन रह, शोर में आसक्ति हैं

क्रोध में तो शोर है, सीमा से परे हैं

विध्वंस में भी शोर है,नही उसका ठौर हैं।

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद

Back to top button