दिल्ली वाले कमरे से प्यार हो गया …
मुझे नहीं पता मैं देशप्रेमी हूं या नहीं.. पर
मुझे मेरे दिल्ली वाले कमरे से प्यार हो गया है!!
मेरा वो दिल्ली वाला कमरा..
वो चौथा माला..
और उस पर चलता वो पंखा!
तपती धूप से मुझको बचा लेने वाला
वो खड़खड़ाता पंखा!
उस पर जोर की आवाज में बजता..
वो डिजिटल तानपुरा..
और वो रियाज!
कभी भीमपलासी तो
कभी राग देश का
वो बदलता अंदाज…
मुझे मेरे गुरुवर की याद दिलाता है !
मुझे अपनी शरण में ले कर
संगीत की राह दिखा कर
छोड़ दिया मुझे मेरे हाल पर!
दोष उनका तो नहीं…ना मेरा ही है..
कुछ हालात का ही सबब ऐसा है कि
मेरी प्यारी चीजों से मेरा तलाक हो गया है!
अब कैसे कहूं तुमसे कि..
देहरादून की जन्नती आबोहवा को..
दिल्ली वाले कमरे से प्यार हो गया है!
जून का वो महीना
पैंतालीस पचास डिग्री का टेंपरेचर..
आग उगलता सूरज और
वो बंद हवा का मंजर याद आता है..
तो अच्छे अच्छों का दिल दहल जाता है!!
फिर भी जाने क्यों
मुझे मेरा वो कमरा याद आता है..
जहां मैं तपता था!
गर्म लू के थपेड़े..
गाते गाते सहता था!
अपने गुरुवर को अपनी वाणी में..
अपनी सांसो में उतारने का
दुस्साहस ही करता था!
उस करिश्माई सपने से प्यार हो गया है..
मुझे मेरे दिल्ली वाले कमरे से प्यार हो गया है!!
©केके जोशी, देहरादून, उत्तराखंड