दुनिया रंग बिरंगी …
बदरंगी सी क्यों हो गई?
मान मर्यादा वाली शालीनता बोझिल सी लगने लगी।
बेबसी मे सुबकती लाचार मुँह छुपाने लगी
चारो ओर शर्म नजरें झुकाये शर्मसार थी।
कलयुग की कड़कती बिजलियाँकहर बन
नन्ही कलियो के जिस्मो को जलाने लगी।
कौन हो कहाँ तक कदम बढ़ाओगे बंजर
आँखों की छलक सहमी तड़प जगाने लगी।
दिल को चीरकर समाज की जंजीरो को तोड़ दो।
अबला नकाब छोड़ कर स्वयं रण चण्डी का
अवतार ले, नारी तू सृष्टि का आधार है।
तू सिंह वाहिनी, फिर क्यो बनी लाचार है।
सीना फाड़ कर दरिद्रों का, होलिका बन , लाज
इंसानियत की सम्भालने नारी बन अब अंबिका।
नन्ही कलियाँ ही कल का भविष्य है।
इन्हे रौधने वालो के लिए बन जा चण्डमुण्ड विनाशनी ।
संहार से दैत्यों के, शुद्ध विचारो से
समाज को स्वस्थ बना।
नारी तू स्नेह से घर सजा, अपने
अस्तित्व रक्षा को आत्मनिर्भर बन जा।
कर पतन पतितो का चामुंडा अवतार धर।
आंचल मे अमृत धारा लेकर जीवन देने वाली
ममतामयी अधर्म का विनाश कर,
अपनी सुरक्षा के लिए दुष्टो का संहार कर।।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा