लेखक की कलम से
जिंदगी से कोई शिक़वा नहीं …
ज़िंदगी हो रही वीरां, हमें कोई शिक़वा नही।
ज़िंदगी हो ज़ाए कैद, हम वो परिंदा नहीं।।
बिखर गई कुछ यूं ज़िंदगी, हमें कोई गिला नहीं।
चाहे टूट जाए दिल, हम वो पियांदा नहीं।।
खुशमिजाज़ रहे ज़िंदगी, ये जरूरी तो नहीं।
ग़मों का रहे ख़ौफ़, ये हमें मंजूर नहीं।।
अच्छा रहे मिज़ाज हमारा, ये भी तो ज़रूरी तो नहीं।
दिल हमारा ज़ल रहा हो, पिघलना हमारी मज़बूरी नहीं।।
मोहब्बत के हैं हम तलबगार, ये जरूरी तो नहीं।
इश्क़ में हम भी हैं बेक़रार, पर हमने इजाज़त दी नही।।
©मानसी मित्तल, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश