लेखक की कलम से

घोर निशा …

इस घोर निशा में

कुछ कह रहे हैं ये….

हौले-हौले से बहते पवन!

आकाश-मंडल के असंख्य तारे!

ये पत्तियों का गतिशील होना!

ये निरंतर बढ़ते कदमों का, आहट करते जाना!

ये पक्षियों का कलरव करना!

ये सूर्य की रक्तिम, उज्जवल किरणों सह मिश्र रंग बिखेरना!

ये कलियों व फूलों का सुगंधित दल होना!

ये बारिश की बूंदों का असमय ही बरस पड़ना!

ये मेघों से आच्छादित पटल पर अचानक ही विद्युत का कौंधना!

ये भीगते नीड़ों में भी, पक्षियों का सिमट कर सोना!

ये जलमग्न रास्तों का कुछ क्षणों में जलमुक्त होना !

ये बिजली के खंभों का झुकना, पर ना टूटना!

ये उत्तार लहरों के वक्ष स्थल पर मुस्कुराना !

ये झंझाबातों के मध्य अडिग हिम होना!

ये अविरल भाव से भावों का लिपिबद्ध होना!

ये सब के सब मुझसे कुछ कह रहे हैं…

क्या आप समझ पा रहे हैं?

ये क्या कह गुजर रहे हैं?

अंध निशा में भी  ….

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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