उफ! अरे तौबा..
ग़ज़ल
मुहब्बत की जमीं पर खूं के मंज़र उफ अरे तौबा ।
जरा सी बात पर हाथों में खंजर उफ अरे तौबा।।
सिर्फ दौलत की ख़ातिर भाई भाई का हुआ दुश्मन ।
नज़र आई मुहब्बत आज बेघर उफ अरे तौबा।।
समय की इक घड़ी कर देती है बर्बाद जीवन को।
बिगड़ जाता है इक पल में मुकद्दर उफ अरे तौबा।।
अमीरों का भी ईमां डगमगाए एक रोटी पर ।
गरीबों का उड़े उपहास अक्सर उफ अरे तौबा।।
वो निर्धन की हो या धनवान की बेटी तो बेटी है ।
फिरें हैं लोग दिल में खोट लेकर उफ अरे तौबा।।
“गज़ल” बेटा रहे परदेस में दौलत पे इतराए ।
डसे मां बाप को लेकिन यहाँ घर उफ अरे तौबा।।
– सविता वर्मा “ग़जल”
संक्षिप्त-परिचय
जन्म- 1 जुलाई। जन्म-स्थान- कस्बा छपार जनपद मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)। देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में सतत रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण। 20 से अधिक सम्मानों से अलंकृत। प्रकाशित पुस्तक-“पीड़ा अंतर्मन की” काव्य संग्रह।विधा-गीत,ग़ज़ल,काव्य,नाटक,कहानी,बाल रचनाएँ आदि।। विशेष-नारी सशक्तिकरण पर बनी लघुफिल्म “शक्ति हूँ मैं” में भूमिका के लिए सम्मान।
सम्पर्क- सविता वर्मा “ग़ज़ल”
द्वारा श्री कृष्ण गोपाल वर्मा
230,कृष्णापुरी , मुज़फ्फर नगर,पिन-251002 (उप्र)