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जब मालदीव राष्ट्रपति की बहन ने हाथ मिला भारत के PM को कहा था बड़े भैया

माले/नई दिल्ली.

1965 में आजाद हुआ मालदीव शुरू से ही भारत को अपना मददगार और सबसे भरोसेमंद पड़ोसी मानता रहा है लेकिन ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब वहां भारत विरोधी सरकार बनी है। पहली प्रो-चाइना सरकार 2013 से 2018 तक रही, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने किया था और अब राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू कर रहे हैं। इन दो मामलों को छोड़ दें तो भारत और मालदीव के रिश्ते काफी प्रगाढ़ रहे हैं।

भारत हमेशा से द्वीपीय मुस्लिम देश मालदीव की मदद करता रहा है। सात सदस्य देशों वाले संगठन दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) में मालदीव भी भारत के साथ एक भागीदार देश है। मालदीव की राजधानी माले में अडू एटॉल नामक खूबसूरत द्वीप पर नवंबर 2011 में 17वें दक्षेस शिखर सम्मेलन की बैठक हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उसमें शिरकत की थी। इस सम्मेलन से इतर उन्होंने तब मालदीव की 77 सदस्यीय संसद 'पीपुल्स मजलिस' को संबोधित भी किया था। अपने भाषण में सिंह ने कहा था कि भारत और मालदीव पारंपरिक मित्र रहे हैं और भारत मालदीव में व्यापार और आर्थिक विकास के मुद्दों पर उसका साथ देता रहेगा। उन्होंने आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी और हिंद महासागर में क्षेत्रीय मजबूती पर भी मालदीव संग सहयोग का वादा दोहराया था।

दरअसल, 2008 में मालदीव में फिर से संविधान लिखा गया था। इसके बाद 2009 में पहली बार बहुदलीय व्यवस्था के तहत चुनाव हुए थे और 'पीपुल्स मजलिस' वहां अस्तित्व में आई थी। मनमोहन सिंह ऐसे पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष थे, जिन्होंने मजलिस को संबोधित किया था। उस वक्त मालदीव की संसद में 77 सदस्य थे, जिनमें पांच महिला सांसद भी थीं। तब मोहम्मद नशीद मालदीव के राष्ट्रपति थे। उनकी बहन ईवा अब्दुल्ला सेंट्रल माले के विलिमाफन्नू सीट से सांसद थीं। उन्होंने तब मनमोहन सिंह के संबोधन पर उन्हें 'बड़ा भाई' कहा था। ईवा ने तब कहा था, "हमारे भारत के साथ लंबे समय से संबंध हैं। मालदीव ने भारत को हमेशा से एक पसंदीदा बड़े भाई के रूप में देखा है।" 25 मिनट के अपने ऐतिहासिक संबोधन के बाद जब डॉ. मनमोहन सिंह मजलिस के बीचो-बीच खड़े हो गए, और एक-एक कर मालदीव के सभी सांसद उनसे हाथ मिलाने लगे और बातचीत करने लगे तभी ईवा अब्दुल्ला ने भी मनमोहन सिंह से मुलाकात की और गर्मजोशी से हिन्दी में उनका स्वागत किया। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि तब ईवा ने कहा था, "आप से मिलकर बहुत खुशी हुई।"

मनमोहन सिंह ने भी जब इसका जवाब हिन्दी में दिया तो ईवा कुछ समझ नहीं सकी। इसके बाद ईवा ने अंग्रेजी में कहा कि सर, मैं समझी नहीं कि आपने क्या कहा? मैंने आपके सम्मान के लिए बस एक लाइन ही हिन्दी सीखी थी। इसके बाद दोनों नेता हंसने लगे और सदन में दूसरे सांसद भी ठहाके लगाने लगे।

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