धर्म

पुराणों में अधिकमास का महत्व क्या है? जानिए क्यों माना जाता है यह पुण्यकाल

हिंदू पंचांग के अनुसार, साल 2026 एक विशेष साल होने वाला है. इस साल कैलेंडर में एक अतिरिक्त महीना जुड़ेगा, जिसे हम अधिकमास या ‘पुरुषोत्तम मास’ के नाम से जानते हैं. सनातन धर्म में इस महीने को आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना गया है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर तीन साल में आने वाला यह महीना इतना खास क्यों है और पुराणों में इसे ‘मलमास’ के बजाय ‘पुरुषोत्तम मास’ क्यों कहा गया? आइए जानते हैं.

क्यों आता है अधिकमास?

हिंदू पंचांग सूर्य और चंद्रमा की गणना पर आधारित है.

चंद्र वर्ष: 354 दिनों का होता है.

सौर वर्ष: 365 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है.

इन दोनों के बीच हर साल लगभग 11 दिनों का अंतर आ जाता है. तीन साल में यह अंतर लगभग एक महीने (33 दिन) का हो जाता है. इसी अंतर को पाटने और ऋतुओं का संतुलन बनाए रखने के लिए हर तीसरे साल पंचांग में एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है, जिसे अधिकमास कहते हैं. मान्यता के अनुसार, इस दौरान तीर्थ यात्रा और पवित्र नदियों में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है.

पुराणों की कथा, मलमास से पुरुषोत्तम मास बनने का सफर

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अधिकमास को शुरू में ‘मलमास‘ कहा जाता था और इसे शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया था. इस कारण इस महीने के अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं थे.अपनी उपेक्षा से दुखी होकर यह महीना भगवान विष्णु के पास गया. तब भगवान विष्णु ने इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ दिया और वरदान दिया कि जो भी इस महीने में मेरी भक्ति करेगा, उसे अन्य महीनों की तुलना में कई गुना अधिक पुण्य प्राप्त होगा. तब से इस महीने को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा और यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हो गया.

अधिकमास का धार्मिक महत्व और लाभ

पुण्य की प्राप्ति: माना जाता है कि अधिकमास में किया गया एक दिन का पूजन सामान्य दिनों के 100 दिनों के बराबर फल देता है.

दोषों की निवृत्ति: इस दौरान व्रत और आत्म-चिंतन करने से कुंडली के दोष और मानसिक तनाव कम होते हैं.

विष्णु कृपा: चूंकि यह भगवान विष्णु का महीना है, इसलिए ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप मोक्ष प्रदायक माना जाता है.

इस महीने में क्या करें और क्या न करें?

दान-पुण्य: दीप दान, वस्त्र दान और अन्न दान का विशेष महत्व है. मांगलिक कार्य: विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत और गृह प्रवेश वर्जित होते हैं.

मंत्र जाप: विष्णु सहस्रनाम और श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण. नया व्यापार: नई संपत्ति की खरीद या नए व्यापार की शुरुआत से बचना चाहिए.

व्रत और संयम: सात्विक भोजन और ब्रह्मचर्य का पालन. तामसिक भोजन: मांस, मदिरा और नशीले पदार्थों का सेवन वर्जित है.

साल 2026 में कब है अधिकमास?

साल 2026 में अधिकमास की शुरुआत 17 मई 2026 रविवार को होगी, वहीं इसका समापन 15 जून 2026 सोमवार को होगा.

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