प्राचीन मंदाकिनी नदी को जिंदा रखने गंगा विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ भरत पाठक के साथ साधु संतों की अनूठी पहल, अभियान का चित्रकूट से आगाज ….
छतरपुर (पंकज पाराशर) । मानव सभ्यता की सबसे प्राचीन नदियों में से एक मंदाकिनी का अस्तित्व खतरे में है। इस नदी का एक बड़ा हिस्सा सूख चुका है और पर्यावरण प्रेमी इसको लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। सूखती नदी को बचाने के लिए एक विस्तृत अभियान की शुरुआत की गई। इसमें 1100 कार्यकर्ताओं को तैयार कर मंदाकिनी की सफाई और उसकी अविरलता को वापस लाने की मुहिम शुरू कर दी गई है। इस नदी के मिटते अस्तित्व पर एनजीटी तक दिशा निर्देश दे चुका है, लेकिन प्राकृतिक दोहन से नदी के अस्तित्व पर संकट है।
बुंदेलखंड के चित्रकूट में बहने वाली यह नदी यूपी और एमपी की सीमा को सींचने वाली सबसे प्रचीन नदियों में से एक है। इसमें हिंदुओं की गहरी आस्था है और वे इसे गंगा की तरह ही पूजते हैं। मान्यता है कि मंदाकिनी नदी को ऋषि अत्री की प्यास बुझाने के लिए अनुसुईया ने प्रकट किया था। भगवान राम ने वनवास अधिकांश समय मंदाकिनी के किनारे ही व्यतीत किया। तुलसीदास ने इसी नदी की बूंदों से बनी स्याही से रामचरित मानस लिखा था। अपने साथ प्राकृतिक और धार्मिक आस्था को सहेजने के साथ बुंदेलखंड के बड़े हिस्से की प्यास बुझाने वाली मंदाकिनी का सूखना चिंता का सबब बन गया है।
गंगा विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ भरत पाठक कहते हैं कि मंदाकिनी नदी ही बुंदेलखंड की विश्वव्यापी पहचान है। इसका सूखना इस इलाके का धूमिल होना है। राम के भगवान बनने की कहानी भी इसी नदी के आंचल से शुरू होती है। वे कहते हैं, वर्तमान समय में भौतिकता वादी समाज, अनियंत्रित जनसंख्या घनत्व, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, रसायन युक्त खेती, पर्यावरण प्रदूषण, वनों का कटाव, पहाड़ों का विनाश और विकृत आस्था के चलते मां मंदाकिनी नदी का अस्तित्व संकट में है।
चित्रकूट के संत नदी को बचाने की मुहिम में जुट गए हैं। उनका कहना है कि यदि समय रहते हुए मंदाकिनी की अविरलता, निर्मलता के लिए हमारा समाज, संत, श्रद्धालु और राज्य सरकार मिलकर पहल नहीं करेंगे तो मंदाकिनी सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही नजर आएगी। संतों का कहना है कि मंदाकिनी नदी के किनारे सभी घाटों पर संपर्क अभियान शुरू कर दिया है।
नदी को समझने के लिए विश्व जल दिवस 22 मार्च को मंदाकिनी नदी के उद्गम स्थल से सती अनुसुइया चलकर पैदल मार्च करेंगे। इसका समापन मंदाकिनी संगम राजापुर के भदेहदु गांव में किया जाएगा। सेंटर फॉर वाटर पीस के संजय कश्यप, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रामबाबू तिवारी की टीम मंथन के अगुवाई में श्रद्धालुओं से संपर्क किया गया। नदी बचाओ यात्रा में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए प्रेरित भी किया गया।