धर्म

मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र अमरकंटक का प्रमुख तीर्थ कपिलधारा …

नर्मदा परिक्रमा भाग -44

अक्षय नामदेव। चक्रतीर्थ का दर्शन करने के पश्चात पंचकोशी परिक्रमा वासी मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा क्षेत्र अमरकंटक का प्रमुख तीर्थ कपिलधारा का दर्शन करते हैं। तीर्थ स्थल अमरकंटक पहुंचने वाले तीर्थयात्री श्रद्धालु पर्यटक अनिवार्य रूप से कपिलधारा का दर्शन करने पहुंचते हैं।

कपिलधारा नर्मदा मंदिर से पश्चिम दिशा की ओर लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां कपिलधारा में मां नर्मदा तीव्र वेग से बहते हुए एक बड़े जलप्रपात का निर्माण करती है जो अत्यंत दुर्गम किंतु दर्शनीय प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है। अमरकंटक से पश्चिम गामी होने के बाद नर्मदा यहां लगभग 100 फीट की ऊंचाई से गिरकर नर्मदा नदी पर पहले जलप्रपात का निर्माण करती है ।

कपिलधारा में नर्मदा नदी के दोनों ओर ऊंची पहाड़ियों पर सघन साल के वृक्ष कपिलधारा जलप्रपात का सौंदर्य बढ़ाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कपिलधारा में कपिल मुनि ने घोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि जब मां नर्मदा सोन से क्रोधित होकर पश्चिम दिशा की ओर तीव्र गति से जाने लगी तो अनेक ऋषि और देवताओं ने मां नर्मदा को मनाने एवं रोकने का प्रयास किया था जिनमें से एक कपिल मुनि भी थे। महर्षि कपिल मुनि ने मां नर्मदा से प्रार्थना करते हुए कहा की हे देवी आप अमरकंटक पर ही रहे अन्यत्र कहीं ना जावे परंतु मां नर्मदा अपने निर्णय पर अटल रहते हुए आगे बढ़ गई तथा आगे बढ़ते हुए उन्होंने कपिल मुनि को आशीर्वाद दिया कि भविष्य में तुम्हारा नाम अमर हो जावेगा तथा यह स्थान तुम्हारे नाम से ही जाना जावेगा। मान्यता के अनुसार कपिल मुनि ने नर्मदा के इसी तट पर रहते हुए घोर तपस्या की तथा सांख्य शास्त्र की रचना की थी। कपिलधारा में कपिल आश्रम स्थित है जहां महर्षि कपिल मुनि की प्रतिमा विराजित है। समीप ही माता दुर्गा की प्रतिमा भी शोभायमान है। कपिलधारा में अनेक अन्य साधुओं के भी आश्रम है।इसी कपिलधारा से आधा किलोमीटर लगभग आगे मां नर्मदा दूध धारा नाम का एक जलप्रपात का निर्माण करती है जिसकी ऊंचाई लगभग 10 फुट है। मान्यताओं के अनुसार दूध धारा दुर्वासा ऋषि की तपोभूमि है। यहां दूध धारा जलप्रपात में नर्मदा का जल दूध के समान दिखाई देता है। पंचकोसी परिक्रमा वाशी कपिलधारा के बाद दूध धारा का दर्शन कर कपिलधारा में आकर विश्राम करते हैं तथा यहां कपिलधारा में मां नर्मदा की पूजा अर्चना भजन कीर्तन कर रात्रि विश्राम कर सुबहमां नर्मदा के पूजन आरती पश्चात कड़ाही प्रसाद चढ़ा कर आगे की परिक्रमा करते हैं।

कपिलधारा से दुर्गम मार्ग पर लगभग 2:50 किलोमीटर आगे पैदल चलने पर शंभू धारा नामक घने वनों के मध्य एक बड़ा ही मनोहर जलप्रपात है। शंभू धारा का दर्शन करने के पश्चात पंचकोसी परिक्रमावासी जालेश्वर धाम का दर्शन करते हैं। जालेश्वर धाम तथा आगे के तीर्थ क्षेत्र का वर्णन पूर्व में कर चुका हूं। इस तरह 5 दिन पैदल चलकर मां नर्मदा अमरकंटक पंचकोसी परिक्रमा पूर्ण हो जाती है। इस पंचकोसी परिक्रमा के दौरान पूरे अमरकंटक पर्वत की परिक्रमा हो जाती है। यह पंचकोसी परिक्रमा अमरकंटक के प्रमुख तीर्थों के साथ अमरकंटक की प्राकृतिक वादियों का भी दर्शन कराती है। पंचकोसी परिक्रमा पूर्ण करने के पश्चात मां नर्मदा की पूजा अर्चना कड़ाही प्रसाद दान इत्यादि कर परिक्रमा का समापन करना चाहिए। मत्स्य पुराण के अनुसार जो मनुष्य अमरकंटक पर्वत की प्रतीक्षा पूर्ण करता है वह पौंडरीक यज्ञ का फल प्राप्त करता है।

 

 हर हर नर्मदे

 

 क्रमश:

 

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