नई दिल्ली

जातिगत जनगणना राज्य सरकार अपने खर्च पर कराएं, केन्द्र के पास समय नहीं : सुशील मोदी…

नई दिल्ली। देश के कुछ विपक्षी दल के नेता केन्द्र सरकार से इस बार की जनगणना के साथ जातीय जनगणना कराने की मांग की है। इसको लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव समेत कई अन्य नेता पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर मांग कर चुके है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर राजी नहीं हुई । सरकार का कहना है कि अब काफी देर हो चुका है। अब प्रक्रिया में बदलाव संभव नहीं है।

 

राज्य सभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो एफीडेविट दिया है, उसमें साफ-साफ बताया है कि यह व्यावहारिक नहीं है कि केंद्र सरकार इसको कराए, इस बार की जनगणना हैंडहेल्ड डिवाइस या डिजिटल तरीके से होने वाली है। जनगणना की पूरी तैयारी तीन साल पहले हो जाती है। उसका मैनुअल छप चुका है। उसका टाइम टेबल बन चुका है, ट्रेनिंग का काम पूरा हो चुका है।

 

उन्होंने कहा कि पूरे देश में जो पिछड़ी जातियां हैं, जब 2011 में जो आर्थिक-जातीय जनगणना की गई थी, तब 46 लाख जातियों की सूची मिलीं, जबकि इस देश के अंदर मुश्किल से सात-आठ हजार जातियां होंगी। केंद्र ने कहा कि जनगणना की पूरी तैयारी हो चुकी है। अब अंतिम समय में पिछड़े लोगों के लिए जनगणना करना केंद्र के लिए संभव नहीं हैं। लेकिन कोई राज्य कराना चाहे तो करा सकता है। जैसे तेलंगाना ने कराया है। कर्नाटक में जब सिद्धारमैया की सरकार थी, उन्होंने कराया है। यह बात अलग है कि सिद्धारमैया की सरकार ने सर्वेक्षण कराया, लेकिन आज तक वह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो पाई है। ओडिशा सरकार कराने की तैयारी कर रही है। अगर कोई राज्य सरकार कराना चाहे तो वह स्वतंत्र है। केंद्र की सरकार ने अपनी असमर्थता जताई है।

 

बोले कि राजद के लोग कहते हैं कि केवल एक कॉलम जोड़ दें। यह केवल एक कॉलम जोड़ देने का सवाल नहीं है। यह केवल एक कॉलम जोड़ देने से नहीं होगा। यह डिजिटल तरीके से गणना की जानी है। अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना इसलिए होती है कि लोकसभा- विधानसभा में जो आरक्षण मिला हुआ है, वह तय है, इसलिए उनका गणना कराना आवश्यक है। इसलिए कोई राज्य सरकार कराना चाहे तो करा सकती है, स्वतंत्र है, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा कि इस जनगणना के साथ उसकी गणना हम नहीं करा सकते हैं। और यही एफीडेविट केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी है।

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