लखनऊ/उत्तरप्रदेश

आवश्यकता चुगल खोरी केंद्रों की …

व्यंग्य 

 

चुगलखोर दो शब्दों का योग है- चुगल और खोर। चुगल का अर्थ चुग लेने से है- माने जो बगुले भांति सलीके से दूसरे की बुराइयों को मोती- सा चुग ले और दुनिया जहान में उगल दे। ऐसा नहीं है कि इस चुगने में केवल बुराइयां आती हो। बल्कि इस क्रिया में अच्छाइयों को भी चुगते समय बुराई रूप में ग्रहण करने की प्रथा है। यही अति पवित्र कर्म  संसार में चुगल खोरी कहलाती है और कर्ता चुगल खोर।

हमारे सामाजिक परिवेश में वैसे तो स्त्री के मुकाबले पुरुष का दबदबा अधिक है लेकिन जहां चुगल खोरी की बात आती है वहां स्त्री पुरुषों से कई कदम आगे है।  पुरुष तो इस क्षेत्र में मानो कोई अनसमझ बच्चा है। यह अभी तक का अनसुलझा रहस्य हैं कि महिलाएं इस क्षेत्र में इतनी प्रगति आखिर कर कैसे गई? जबकि उन्हें तो विकास की पगडंडी पर दौड़ना अभी तक आया ही कहां है?!

चुगल खोरी को समाज भले ही हीन दृष्टि से देखे लेकिन मनोविज्ञान इसके गाढे मायने बताता है। मनोविज्ञान के अनुसार जो महिलाएं जितनी अधिक चुगली करती हैं वह उतनी ही मानसिक स्वस्थ रहती हैं! जिन मनो रोगों का इलाज न केवल महंगा है बल्कि समय अधिकता की मांग भी करता है, उसे महिलाएं अपने अनुसार कम -ज्यादा वक्त देकर मात्र इस चुगली मोहतरमा के भरोसे स्वस्थ रहा करती हैं और बात बात पर विज्ञान की दुहाई देने वाले भी इस बात से पूर्णता सहमत होंगे। आप माने ना माने परंतु पुरुषों के मुकाबले हृदय आघात से मरने वाली महिलाओं की कम संख्या भी इस बात की बखूबी पुष्टि करती है।

अगर चुगल खोरी के फैलाव की बात की जाए तो शुरू में कोई एक व्यक्ति ही चुगली के केंद्र में होता है। फिर धीरे-धीरे व्यक्ति  केंद्र से परिधि पर आ लगता है और केंद्र  उस व्यक्ति का परिवार, नाते- रिश्तेदार तक हो उठता स्थान  हैं। इस संदर्भ में चुगल खोर व्यक्ति अन्याय बिल्कुल नहीं करता। यानी मुझे यह बात कहने में गुरेज नहीं कि चुगली भी ब्रह्मांड भांति विस्तार पाती है। इस संदर्भ में एक बात और कहती चलूं कि ब्रह्मांड की प्रवृत्ति विस्तार के पश्चात  सिकुड़ने की होती है लेकिन चुगली के सिकुड़ने की संभावनाएं नहीं के बराबर होती है ,इस की प्रवृत्ति केवल और केवल विस्तार की रहती है।

जीवन रक्षक के तौर पर मैं इस चुगल खोरी के घोर पक्ष में हूं और चाहती हूं कि महिलाएं जिस द्रुतगति से इस क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ रही उतने पुरुष भी भविष्य में गाड पाएं तो चिकित्सा की मुंह जोखी से निजात पाया जा सकता है। अस्पतालों की कमी से जूझ रहे केंद्र और राज्य सरकारों से मेरा व्यक्तिगत अनुरोध है कि चुगल खोरी जीवन के लिए किफायती दवा है अतः चुगली केंद्र जरूर खोल दिए जाएं।  शिक्षण प्रशिक्षण की चिंता ना करें क्योंकि  इन केंद्रों में प्रशिक्षण देने हेतु चुगली विशेषज्ञ महिलाएं मात्र दो वक्त की चाय बिस्किट के सहारे अपनी कला का जलवा दिखाने को सदैव तत्पर रहेंगी!

 

©डॉ अनीता यादव (व्यंग्यकार), नई दिल्ली                               

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