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युवती की नसें हो गई थी ब्लॉक, डॉक्टरों ने गुब्बारे से किया सफल आपरेशन…

रायपुर। जगदलपुर की 23 वर्षीय एक युवती दुर्लभ बिमारी से ग्रसित थी। जिसके कारण जगह-जगह उसकी नसें ब्लॉक हो गई थी। इससे हार्ट फेल होने का खतरा था। डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में नसों की एक दुर्लभ बीमारी से मरीज की जान बचाई है। इस संस्थान में इस अजीबो-गरीब बीमारी टाकायासू आर्टराइटिस का यह पहला मामला था। डॉक्टरों ने गुब्बारे की मदद से उसकी नसें खोलकर नया जीवन दिया है।

कार्डियोलॉजिस्ट व विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया, टाकायासू आर्टराइटिस का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है। इसलिए इसे नॉनस्पेसिफिक एओर्टोआर्टेराइटिस कहा जाता है। इस बीमारी में हाथ की नसों में कई बार धड़कन नहीं मिलती, इसलिए इसे पल्सलेस डिजीज भी कहा जाता है।

डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि यह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिसमें रक्त वाहिकाएं और नसें सूज जाती हैं। सूजने के बाद सिकुड़ने लगती हैं। रक्त वाहिकाओं का सूजन, महाधमनी को नुकसान पहुंचाती है। महाधमनी शरीर की सबसे बड़ी धमनी(नाड़ी) है, जो हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों और इसकी अन्य शाखाओं तक खून ले जाती है। इसके इलाज के लिए डॉक्टरों की टीम ने बैलून एंजियोग्राफी की मदद ली।

इस प्रक्रिया में एक कैथेटर को रक्त वाहिका में डाला गया, जिसकी नोंक पर एक पिचका हुआ गुब्बारा लगा हुआ था। जहां-जहां धमनी संकुचित थी, वहां गुब्बारे को जरूरत के अनुसार फुलाया गया, जिससे धमनी को खोलने में मदद मिली। इस पूरी प्रक्रिया को बैलून डिलेटेशन ऑफ कोरोनरी एओर्टा कहते हैं।

इस पूरे प्रक्रिया में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. जोगेश विशनदासानी, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा, डॉ. अंकिता बोधनकर, डॉ. वेदव्यास चौधरी, कैथलैब टैक्नीशियन आईपी वर्मा, खेमसिंह मांडे, नवीन ठाकुर और नर्सिंग स्टाफ बुधेश्वर शामिल रहे।

डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया, अगर बैलून एंजियोग्राफी की मदद से इसका इलाज नहीं होता तो इलाज की प्रक्रिया अधिक जटिल हो जाती। इसके बाद दिल की मांसपेशियों तक खून की आपूर्ति करने वाली धमनियों के संकुचन को ठीक करने के लिए कोरोनरी आर्टरी बाइपास की आवश्यकता हो सकती थी।

पूरी टीम की मदद से सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक हमने सिकुड़ी हुई नसों को एक-एक करके खोलने में सफलता प्राप्त की और मरीज की जान बच गई। बैकअप प्लान के तौर पर हमने स्टंट और कार्डियक सर्जरी की तैयारी की थी, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।

डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया, मरीज जब अस्पताल में भर्ती हुई तब उसके शरीर के ऊपरी और निचले हिस्से के ब्लड प्रेशर में 100 का अंतर था। बैलून प्रक्रिया के बाद यह अंतर घटकर 40 तक पहुंच गया। बैलून डिलेटेशन के लिए सबसे पहले पैर के नसों के रास्ते सिकुड़ी हुई नसों तक पहुंचे। किडनी से छाती के बीच नसें बहुत ज्यादा बंद थी और महाधमनी में छाती के पास प्रेशर ड्रॉप हो रहा था। वहां आर्टरी 3 मिलीमीटर के करीब थी, उसको 70 मिलीमीटर वाले बैलून से खोला। एक अन्य स्थान पर 90 प्रतिशत ब्लॉकेज था। उसको 70 डायामीटर वाले बैलून से किडनी की नस तक खोला। उसके बाद किडनी की नस के लेवर पर जो प्रेशर 85/60 था। वह बढ़कर 140/70 हो गया।

जगदलपुर निवासी शंकरलाल ने बताया कि 4 अक्टूबर को उनके पोती के शरीर के बाएं हिस्से में तेज दर्द होने पर जगदलपुर में डॉक्टर के पास लेकर गए। वहां शुरुआती जांच के बाद विशाखापट्टनम रेफर कर दिया गया। वहां जांच में पता चला कि रक्त वाहिकाएं सूख रहीं हैं और सूखकर बारीक हो रही हैं। डॉक्टरों ने दवाइयां शुरू की और फिर वापस जगदलपुर लौट आए। इसके बाद वापस 21 अक्टूबर को फिर से तेज दर्द उठा और मरीज को हम लोग रायपुर लेकर आए। यहां ACI में मरीज को भर्ती किया गया। सभी प्रकार की जांच हुई। उसमें बीमारी का पता चला।

इस बीमारी के संकेत में अक्सर अत्यधिक थकान लगना, अचानक वजन का कम होना, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द रहना, विशेषकर रात में पसीने के साथ हल्का बुखार और धमनियों में सूजन शामिल है। इसकी वजह से हाथ-पैर में कमजोरी और दर्द, चक्कर और बेहोशी, उच्च रक्तचाप, एनीमिया और सीने में दर्द की समस्या होती है। जटिल होने के बाद रक्त वाहिकाएं का सख्त और संकुचित हो जाती है। उच्च रक्तचाप, हृदय की सूजन, हार्ट फेलियर, स्ट्रोक, टांसिएंट इस्केमिक अटैक, एन्यूरिज्म, हार्ट अटैक जैसी घटना हो सकती है।

टाकायासु या ताकायासु आर्टराइटिस को पहली बार 1908 में पहचाना गया था। जापानी नेत्र रोग विशेषज्ञ मिकिटो ताकायासु द्वारा जापान नेत्र विज्ञान सोसायटी की वार्षिक बैठक में इस बीमारी का वर्णन किया गया। बाद में उन्हीं के नाम पर इस बीमारी का नामकरण ताकायासु आर्टराइटिस किया गया।

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