मध्य प्रदेश

शिवगंगा का ‘हलमा’: कंधे पर गेंती रखकर झाबुआ पहुंचे सीएम शिवराज, पार्टी कार्यकर्ताओं ने किया जोरदार सम्मान

झाबुआ। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनावी साल में नए-नए अंदाज में नजर आ रहे हैं। शिवराज कभी आदिवासी तो कभी किसानों को रिझाने के लिए उन्हीं की वेशभूषा में दिखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। रविवार को झाबुआ में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक नया अवतार नजर आया। सीएम जब झाबुआ पहुंचे, तो कंधे पर गेंती रखकर हेलीकाप्टर से उतरे। उन्होंने यहां श्रमदान भी किया।

मध्यप्रदेश के झाबुआ में शिवगंगा संस्था द्वारा आयोजित किए जा रहे दो दिवसीय ‘हलमा’ कार्यक्रम में रविवार को सीएम शिवराज सिंह चौहान पहुंचे। जब सीएम यहां गोपालपुरा हवाई पट्टी पर पहुंचे तो उनके कंधे पर गेंती रखी थी। इस समय यहां पार्टी के कार्यकर्ता भी सीएम का स्वागत करने के लिए मौजूद थे। उन्होंने सीएम का जोरदार स्वागत किया। इससे एक दिन पहले राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने भी शिरकत की और वे भी कार्यक्रम में कंधे पर गेंती लिए  नजर आए थे।

राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने भी  किया हाथीपावा की पहाड़ी पर श्रमदान

दो दिवसीय हलमा कार्यक्रम में पहले दिन शनिवार को राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने भी शिरकत की। उन्होंने भी कंधे पर गेती उठाई थी और आदिवासियों के साथ पैदल चले थे। हाथीपावा की पहाड़ी पर राज्यपाल ने श्रमदान भी किया। इस आयोजन में दूर-दूर से आदिवासी समाज के लोग पहुंचे। आदिवासियों ने अनुशासन का परिचय देते हुए छोटे स्थान पर एक कतार में यात्रा भी निकाली।

क्यों प्रसिद्ध है हाथीपावा…

कार्यक्रम से पहले हाथीपावा पर शासन ने यहां एक हेलीपेड बनाया है। यहां झूले चकरी और शेड लगाया गया है। इसके पास ही सनसेट पाइंट भी है। आपको बता दें, हाथीपावा के बड़े क्षेत्र को हरा करने के लिए अभियान की शुरुआत पूर्व एसपी महेशचंद्र जैन ने की थी। लोगों और संगठनों को साथ लेकर पौधे लगाए थे।

क्या है ‘हलमा’ परम्परा…

जनजाति-समाज में ‘हलमा’ एक सामूहिक आयोजन को कहा जाता है। जब भी किसी परिवार या गांव क्षेत्र में कोई आपत्ति आती है या व्यक्ति को या गांव क्षेत्र को सहायता की आवश्यकता होती है तो पूरे के पूरे गांव के लोग एक जगह एकत्र होकर उसकी सहायता करते हैं। जैसे कि किसी गांव में तालाब बनाना है, कुंआ खोदना है या फिर किसी किसान के पास खेत जोतने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। ऐसे में पूरे गांव के लोग एकत्र होकर एक साथ मिलकर उस काम को पूरा करने के लिए जुटते हैं और कई दिनों, महीनों के काम को कुछ ही समय में पूरा कर देते हैं। उसके बदले में कोई पारिश्रमिक नहीं लिया जाता। खुशी से व्यक्ति उन एकत्रित लोगों को नाश्ता या भोजन अपनी इच्छा शक्ति से करवा देता है। इस सामूहिक प्रयास को ही हलमा कहा जाता है।

हलमा के जरिये अब तक यह हुआ

  • 91 तालाब सामूहिक श्रमदान से ग्रामीणों ने बनाए
  • 1 लाख 50 हजार के करीब कंटूर निर्माण
  • 150 मातानु वन बनाए गए
  •  500 से अधिक पौधरोपण हुआ

शिवगंगा संगठन ने आदिवासियों में जगाया स्वाभिमान 

शिवगंगा संगठन के राजाराम कटारा ने बताया कि यह स्वाभिमान और स्वावलंबन जगाने का मुख्य रूप से अभियान है। धरती माता की सेवा के लिए इसमें दो दिनों तक प्रशिक्षण दिया जाएगा। शिवगंगा के जीएस भंवर भाई का कहना है कि गांव-गांव में इस कार्यक्रम के माध्यम से जनचेतना जगाई जाती है। जल संरक्षण के साथ गोसंवर्धन व नस्ल सुधार और जैविक खाद से धरती की सेहत बेहतर बनाने का भी कार्यक्रम चलता है।

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