धर्म

नर्मदा परिक्रमा के उत्तर तट अमरकंटक में राम घाट जिसे अब आधुनिक स्वरूप दिया जा रहा है …

मेरी नर्मदा परिक्रमा- 35

अक्षय नामदेव। मां नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक स्थित धर्म पानी आश्रम से हम सुबह लगभग 9:00 बजे रामघाट अमरकंटक के लिए रवाना हो गए। मां नर्मदा की परिक्रमा में उत्तर तट पर रामघाट अंतिम घाट है जहां हमें तट पूजा करनी थी।  नर्मदा कुंड अमरकंटक से दक्षिण तट पर चलने पर कुंड से 500 मीटर पर यह पहला नर्मदा घाट है। हमारे सनातन धर्म परंपरा में प्रारंभ को राम से शुरू किया जाता है इसलिए संभवत अमरकंटक के प्रथम नर्मदा घाट को रामघाट से संबोधित किया जाता रहा है। हम रामघाट अमरकंटक में करीब 10:00 बजे पहुंच चुके थे। यहां राम घाट पर हमने मां नर्मदा की प्रतीकात्मक पूजा अर्चना की । दरअसल इस समय रामघाट अमरकंटक में जल का नामोनिशान नहीं है। मां नर्मदा की पतली धार भी यहां स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थी। यहां राम घाट पर नर्मदा के भराव क्षेत्र की खुदाई एवं घाटों की मरम्मत का काम चल रहा है जिसके कारण रामघाट से लेकर, कपिला संगम एवं अरण्यी संगम तक का पानी खोल दिया गया है। यह काम लगभग 6 महीने से चल रहा है । कुछ कुछ महीने पूर्व ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमरकंटक आकर राम घाट के पुनरुद्धार का कार्य प्रारंभ कराया था ऐसे में उम्मीद है बारिश के पूर्व तक रामघाट का सफाई एवं पुनरुद्धार का कार्य काम पूर्ण हो जाएगा।

बचपन से लेकर अभी तक की मेरी स्मृतियों में रामघाट अमरकंटक का अत्यंत प्रसिद्ध एवं पुराना घाट है। इस रामघाट ने अमरकंटक में परिवर्तन के अनेक पड़ाव एवं दौर देखे हैं। लाखों ऋषि-मुनियों एवं मनीषियों की तपस्या तथा करोड़ों परिक्रमावासियों एवं श्रद्धालुओं के तीर्थ स्थली अमरकंटक आगमन  का साक्षी रहा है यह रामघाट। सच पूछो तो प्राचीन अमरकंटक यहीं रामघाट में बसता है। अमरकंटक में महाशिवरात्रि को परंपरागत रूप से भरने वाला मेला यही रामघाट में भरता रहा है।  अमरकंटक में रविवार को भरने वाला साप्ताहिक बाजार भी यही रामघाट में भरता है। इस साप्ताहिक बाजार ने भी अपना स्थान कई बार परिवर्तित किया है।

पहले यह सप्ताहिक बाजार मां नर्मदा के कुंड के एकदम पास भरता था।नए लोगों को शायद पता ना हो एक जमाने में अमरकंटक का बस स्टैंड रामघाट के मैदान में हुआ करता था। आज जब मैं मां नर्मदा की परिक्रमा के अंतिम पड़ाव की ओर हूं तथा रामघाट उत्तर तट पर हूं तो रामघाट को लेकर ना जाने कितनी ही स्मृतियां मेरे मन मस्तिष्क में कौंध रही है। बचपन से लेकर अभी तक की न जाने कितनी बातें याद आ रही है जो हमने रामघाट में गुजारी है । बचपन की धुंधली स्मृतियों के बीच रामघाट तट पर भरने वाले महाशिवरात्रि मेले में मां का आंचल पकड़े नर्मदा कुंड स्नान के लिए जाते समय मेले में गुम हो जाने की घटना को मैं भला कैसे भूल सकता हूं ? भला हो उस जमाने के मेला पुलिस कंट्रोल रूम का जिसने मुझे मां से मिलाने में मदद की थी।

तबके रामघाट और अब के रामघाट में कितने बदलाव आए हैं। उन दिनों तो यहां सिर्फ उबड़ खाबड़ पहाड़ी ढलान थी जो धीरे धीरे मैदान का रूप दे दी गई । प्रारंभ से ही नर्मदा जयंती एवं अन्य पर्वों पर होने वाले कार्यक्रम एवं कथा प्रवचन रामघाट तट के इसी मैदान पर हुआ करते है। उत्तर तट पर सड़क के उस पार तीन दशक के भीतर बने बड़े-बड़े आश्रम भी न थे और ना ही यह पक्की इमारतें और ना सीमेंट कंक्रीट का जंगल। स्मृतियों को और उकेरुं तो रामघाट के दाहिनी ओर बनी पुरानी यज्ञशाला से लाउडस्पीकर से गूंजती वह चौपाई अवश्य सुनाई देती है,,,”जय भगवंत अनंत अनामय, अनधि अनेक एककरुणामय”

लगभग 38 साल पहले रामघाट में गृहस्थ संत द्वारा 12 वर्ष तक कराए गए अखंड रामचरित मानस पाठ में यह चौपाई अंतरे के रूप में अनिवार्य रूप से गाया जाता था जो आज भी  कानों में गूंजता है। उसी दौर में रामघाट उत्तर तट मुख्य मार्ग के किनारे कल्याण दास बाबा के आश्रम ने आकार लेना शुरू किया था। आधुनिक अमरकंटक के शिल्पी के रूप में कल्याण बाबा का नाम अग्रणी संतों में है। उन दिनों अमरकंटक में नर्मदा के दोनों तट पर  सघन साल वनों की सुंदरता देखते ही बनती थी। खैर वह दौर और था और यह दौर और। अब तो तपोभूमि अमरकंटक को स्मार्ट सिटी का दर्जा दे दिया गया है। रामघाट के तट पर ही सीमेंट कंक्रीट के जाल से 40 दुकानों की लंबी श्रृंखला तैयार कर दी गई है यहीं कहीं पहले मीराबाई  नाम की पहाड़न का भोजनालय हुआ करता था। मैं अपने परिवार एवं मित्रों के साथ जब भी अमरकंटक दर्शन पर आया मां नर्मदा के रामघाट का दर्शन पूजन उपरांत मीरा भोजनालय में ही भोजन करना मुझे अच्छा लगा। खैर अब ना तो मीराबाई रही ना उसका भोजनालय,,।

पुरानी स्मृतियों के झरोखों में झांकते हुए मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हो रहा था।काफी देर रामघाट तट पर बिताने के बाद हम परिक्रमा पथ से होते हुए माई की बगिया रवाना हो गए। माई की बगिया में हमें अपनी परिक्रमा पूर्णता प्रदान करनी थी। राम घाट के ऊपर रास्ते में हमने कुछ फल मिष्ठान वगैरह लिया तथा आगे बढ़ गए।

 

 

                    हर हर नर्मदे

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