बिलासपुरछत्तीसगढ़

सात गुणों की आभा से संपन्न व्यक्तित्व मेरे प्रेरणा स्रोत – मंजू दीदी

बिलासपुर। भक्ति और भक्ति का भाव व यथार्थ रीति से परमात्मा को समझकर भक्ति करना यही भक्ति का आनंद है अर्जुन के भीतर क्षमता है लेकिन फिर भी वह युद्ध नहीं करना चाहता क्योंकि उसका मन दुर्बल हो गया है इसलिए कहा मन के हारे हार है मन के जीते जीत और उसे महसूस हो रहा है कि भगवान उसे कह रहे हैं कि अपने अनादि संस्कारों को धारण करो और जागृत हो जाओ यह केवल बाहर की युद्ध की बात नहीं वरन आंतरिक युद्ध की तैयारी भगवान करा रहे हैं आज के चुनौतीपूर्ण वातावरण में जहां हर पल आंतरिक वैचारिक युद्ध चल रहा है।

स्वधर्म सुख का आधार और अधर्म दुख का कारण है स्वधर्म अर्थात स्व का धर्म आत्मा स्वयं सुख शांति प्रेम आनंद ज्ञान शक्ति पवित्रता इन सातों गुणों से संपन्न है सातों गुणों से संपन्न आत्मा को सतोगुणी कहते हैं आत्मा का स्वधर्म ही शांति है, शांति हमारे भीतर हैl

अधर्म अर्थात क्रोध, अशांति उदासीनता, आलस्य, भय, चिंता, ईर्ष्या, द्वेष, जो दुख का कारक है भगवान स्वधर्म में स्थित होने की शिक्षा अर्जुन को दे रहे हैं, वर्तमान परिवेश में केवल अपना स्वार्थ हम देख रहे हैं उससे कभी भी हमें सुख नहीं मिल सकता कहा गया है पराधीन सुख सपने हूं नाही अर्थात पराधीन मानव विकारों के वशीभूत मानव स्वप्न में भी सुखी नहीं हो सकता, स्वधर्म में टिकने से उमंग उत्साह का संचार आत्मा में होता है और विकारों से युद्ध करने के लिए व्यक्ति स्वयं को तैयार पाता है।

भक्ति की गहराई में जाने से पूर्व भगवान ने आत्मा का ज्ञान दिया हम शरीर नहीं लेकिन एक आत्मा है,आत्मा शरीर के माध्यम से कर्म करती है, सतोगुणी आत्मा दिव्य आभा लिए हुए सभी को आकर्षित करती हैं जैसे एक छोटा बच्चा पवित्र होता है, निर्मल होता है और वह पवित्रता हमें अपनी तरफ आकर्षित करती है लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है विकारों की वशीभूत होने के कारण दुखी होने लगता है और उसका आकर्षक व्यक्तित्व धीरे धीरे लुप्त होने लगता है फलस्वरुप दुखी होने लगता है जहां आत्मज्ञान है,सुख है,पवित्रता है,आनंद हैं,वहीं खुशी है,उत्साह है और मनुष्य आत्म उन्नति का अनुभव करता है।

उक्त बातें ब्रह्मा कुमारीज टिकरापारा, प्रभु दर्शन भवन,सेवाकेंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने छत्तीसगढ़ राज्य योग पतंजलि के तत्वाधान में रखे गए त्रि- दिवसीय गीता ज्ञान की सार्थकता के श्रृंखला में द्वितीय दिवस पर जूम एवं यूट्यूब पर जुड़े हुए साधकों को संबोधित करते हुए कहींl गीता ज्ञान के द्वितीय श्रृंखला की कड़ी में ज्ञान योग, भक्ति योग, समत्व योग, बुद्धि योग,कर्म योग की शिक्षा भगवान ने अर्जुन को दी हैंl ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहां की जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान राजयोग के माध्यम से परमात्मा से शक्ति प्राप्त कर किया जा सकता हैl राजयोग सभी योगों का राजा हैl

आत्मा का सर्वश्रेष्ठ संबंध परमपिता परमात्मा के साथ इसे राजयोग कहा जाता है इससे अनंत शक्तियों का समावेश आत्मा में होता है मन सशक्त और शक्तिशाली बन जाता है अपने अनुभवों को साझा करते हुए मंजू दीदी ने कहा कि अनेक गुरुओं का सानिध्य मुझे मिला सात गुणों की आभा से संपन्न व्यक्तित्व ही मेरे प्रेरणा स्रोत हैं स्वामी विवेकानंद गौतम बुद्ध स्वामी सत्यानंद , पिता ब्रह्मा बाबा आदि जिन्होंने शक्तिशाली मन से परिस्थितियों को अवसर में बदल दिया।

शांत और शक्तिशाली मन समस्याओं में भी सफलता प्राप्त कराती है। जब हमारा मन कमजोर होता है तो परिस्थिति बन जाती है समस्या, जब हमारा मन असंतुलन की स्थिति में होता है तब परिस्थिति बन जाती है चुनौती, और जब हमारा मन शक्तिशाली होता है तब परिस्थिति बन जाता है और अवसर।

इसलिए गीता ज्ञान को जीवन में अपनाकर मन को शक्तिशाली और जीवन को सफल और सहज बनाएं। विकारों का त्याग और कर्मों की गहन गति आदि गहरी बातों का द्वितीय दिवस में विस्तार पूर्वक गीता श्लोक के माध्यम से वर्णन कर ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी नें साधकों को बताया।

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