दुनिया

लॉक डाउन में सब बंद नहीं, बेहतरी के भी कई द्वार खुले

कोरोना विषाणु से उत्पन्न वैश्विक आपदा की विभीषिका को इससे बचे हुए दुनिया के ज्यादातर देश और उनके नागरिक कभी नहीं भूल पाएंगे। भारत भी नहीं भूल सकेगा। खासकर कोरोना के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए लागू 3 हफ्ते का लॉक डाउन को भी कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। बड़ी आबादी और कम संसाधनों वाले देश भारत में इन दिनों बहुत कुछ पूरी तरह से बंद हो गया है तो कुछ नई मुश्किलों के साथ बेहतरी के भी अनेक द्वार खुल रहे हैं। सबसे पहली बात यह हुई है कि पूरी दुनिया के अरबों लोग सरहदों से ऊपर उठकर एक भाव में आ गया है।

सबका एकमात्र लक्ष्य कोरोना मुक्त दुनिया बनाने की चाह है। चाहे अमीर हो या गरीब, सभी साम्प्रदायिकता, जाति गत भेदभाव से दूर होकर और अलग-अलग क्षेत्रों और नस्लों जैसी अलगाव वादी प्रवृतियों से फिलहाल मुक्त हो गए हैं। मानवीय समाज में परस्पर एक दूसरे के बीच संवाद बढ़ा है। हार्दिक विकास का सिलसिला तेज ही गया है। सभी एक दूसरे की मदद के लिए खड़े हो रहे हैं। सरकार और प्रशासन को आम नागरिकों के हित में अपनी दक्षता को बगैर चूक के साबित करने की जिम्मेदारी आई है, जिसमें सालों से सुस्ती और लापरवाही बढ़ रही थी। अब उनमें दुरुस्तगी के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में शोध और अनुसंधान की गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं।

इस बीच यह भी सुखद सूचना है कि पुणे की महिला वैज्ञानिक मीनल दखावे भोसले की भी बहुत चर्चा हो रही है। उनके नेतृत्व में कोराना वाइरस की जांच के लिए सस्ती किट बनाया गया है। किट की परिकलपना और निर्माण के दौरान मीनल गर्भवती थी। उन्होंने पहले तैयार किया फिर बेटी को जन्म दिया। इस किट से जल्दी जांच रिपोर्ट आती है। दूसरे किट 4500 रुपए के हैं और जांच रिपोर्ट भी छह घंटे के बाद आती है। मीनल के किट केवल 12 रुपए में। मीडिया की रंगत भी बदल रही है।

हाशिए पर पड़े लोगों को भी अब मीडिया में महत्व दिया जाने लगा है। शराब के बढ़ते चलन के कारण जहां देशभर की महिलाएं परेशान रहती थीं, उनको भी बहुत राहत मिल रही है। गुटखा, तंबाकू व सिगरेट बंद हो गए हैं तो अब सौफ, तुलसी खाने लगे हैं और पारंपरिक खाद्यों को फिर से आजमाया जाने लगा है। अराजक हो गई जीवन पद्धति में भी सुधार हो रहा है। लोग नियम कायदे का पालन करने लगे हैं। प्रकृति की कुव्वत को भी समझने लगे हैं। तीन सप्ताह के लॉक डाउन के दौरान बहुत कुछ ऐसा भी घटित हो रहा है जिसका नजारा ज्यादातर लोगों ने कभी नहीं देखा था और न महसूस ही किया था। सड़कों पर वाहनों के नहीं चलने से जहां शहरों का प्रदूषण कम हो रहा है, डीजल और पेट्रोल की भारी बचत हो रही है। अपराध भी कम हो गए हैं, सड़क हादसों में कमी आ गई है, नहीं तो इन हादसों में ही रोज बहुत से लोगों की मुफ्त में जानें जा रही थीं। लॉक डाउन से जहां कई मुश्किलें खड़ी हुई हैं तो साथ ही कई ऐसी शुरुआत भी हो रही हैं, जिसकी अपेक्षा पृथ्वी पर बढ़ते संकट को देखते हुए हाल के सालों में ज्यादा की जाने लगी है।

मनुष्य की कठिनाइयों को दूर करने के प्रयत्नों के साथ बेजुबान पशुओं के प्रति भी संवेदना बढ़ी है। बड़े शहरों के पास के समुद्री तटों पर जल जीव भी दिखाई पड़ने लगे हैं, जिन्होंने बढ़ते शहरी कोलाहल के कारण सागर के किनारे आना छोड़ दिया था। छोटे बड़े शहरों में जहां चिड़ियां लुप्त हो गई थी उनकी चहक सुनाई पड़ने लगी है। बड़ी संख्या में लोगों की मदद के लिए संस्थाएं और संगठन भी आगे आए हैं और अनगिनत ऐसे लोग भी सक्रिय हो गए हैं, जो खुद की प्रेरणा से मुश्किलों से घिरे लोगों की मदद के लिए देशभर में खड़े हो रहे हैं। लॉक डाउन को एक दूसरे की मदद करने जैसे मानवीय भावनाओं के व्यापक उभार के लिए भी याद किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि लॉक डाउन के फैसले को पूरे देश के लोगों ने खुले दिल से स्वीकार किया है और अपने और दूसरों के बचाव के लिए जो निर्देश दिए गए हैं उनका पालन करने में लोग कन्नी नहीं काट रहे हैं। एक और अप्रत्याशित घटना के लिए भी लॉक डाउन को याद करेंगे की घोषणा के बाद जैसे ही सब कुछ बंद हो गया। लोग निश्चिंत थे कि वे 3 सप्ताह अपने अपने घरों में बैठकर जैसे-तैसे गुजार देंगे लेकिन उनके ध्यान में हाशिए पर मुश्किलों मै जी रहे लोगों के हालात का अंदाजा नहीं था। वे स्वयं अपनी जान बचाने के लिए घरों मै बंद हो गए थे।

जब लॉक डाउन के दूसरे रोज ही देश के विभिन्न शहरों खासकर पंजाब, हरियाणा के साथ दिल्ली से हजारों लोगों का हुजूम सड़कों पर दिखाई पड़ने लगा। यह दृश्य देख देश के ज्यादातर लोगों का दिल दहल गया। देश की मीडिया का भी ध्यान गया। फोटो वायरल होने लगे। बहुत से लोग खासकर युवा उनकी मदद के लिए उमड़ पड़े। इसके लिए प्रधान मंत्री ने भी माफी मांगी। हाशिए पर पड़े इन लोगों के लिए सभी के दिलों में करुणा का उद्भव हुआ। फिर क्या था। सभी का ध्यान इन दुखियारों की ओर गया। लोग इनकी मदद में आगे आने लगे। माहौल ऐसा बान गया है कि हर कोई जिसके पास जो हुनर है साधन है से मदद करने को तैयार हो गया है।

विभिन्न शहरों में दिहाड़ी मजदूरों सहित सड़कों पर अपने छोटे-छोटे स्वतंत्र रोजगार करने वाले लोगों को अपना भविष्य अनिश्चित लगने लगा और उन्हें कोई सूरत समझ नहीं आई तो अपने हौसले से ही पैदल ही चल पड़े अपने गांव की ओर। तो उन्हें रास्ते में भोजन पानी देने बहुत से लोग सामने आने लगे।

देशभर में परिवहन सुविधाएं पूरी तरह से ठप हो जाने के बाद अभी भी बहुत से ऐसे शहर बचे हुए हैं जहां दिन को कमाने और रात को खाने वाले लोग फंसे हुए हैं, जिनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है। इनके साथ अनेक संपन्न घरों में भी बहुत जगहों पर अधिक उम्र के लोग भी संकट से घिर गए हैं, उनके पास पैसे तो हैं पर जरूरत के सामान नहीं। पास में कोई तीमारदार भी नहीं। ऐसे सभी लोगों की मदद के लिए भी कई शहरों में अनेक युवा मौज मस्ती की दुनिया से दूर आकर स्वयं चेतना से व्हाट्सएप और फेसबुक पर समूह बना कर संसाधन जुटाने और पुल के नीचे या शहर के बाहर झुग्गियों में रहने वाले गरीब और मजबूर लोगों के बीच उन्हें वितरित कर रहे हैं।

लोग प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के राहत कोष में पैसे डालने लगे हैं। जयपुर में अाई कैन फाउंडेशन वहां की झुग्गियों में बेरोजगार हो गए लोगों की मदद कर रहा है। लॉक डाउन की पूरी अवधि तक फाउंडेशन गरीब लोगों के बीच भोजन सामग्री और साबुन व मास्क का वितरण करता रहेगा। भोपाल का रोटी बैंक भी भूखे लोगों के लिए रोटी का प्रबंध कर रहा है। इसकी शुरुआत दो साल पहले भोपाल के यासिर ने थी। भोपाल में ही कुछ युवाओं ने फेसबुक पर भोपाल सिटी इंफॉर्मेशन पोर्टल नाम से एक समूह बनाया है, जिसके जरिए वे मजबुर लोगों की मदद कर रहे हैं। हरियाणा के एक डॉक्टर एस एस सांगवान ने पचास बेड वाला अपना आयुष्यमान भव अस्पताल स्टाफ और सभी सुविधाओं के साथ स्थानीय प्रशासन को सौंप दिया ताकि कोरोना का इलाज करने में कोई कठिनाई नहीं हो।

बिहार के भागलपुर में युवा समाजसेवी प्रशांत विक्रम की मदद से अंग मदद फाऊंडेशन की सचिव वंदना झा अपने इलाके के लोगों के बीच कोरोना से बचाव का साधन मुहैया करा रही है, लोगों को जागरूक कर रही है। किशोर उम्र अस्तित्व झा फेसबुक के जरिए और स्वयं लोगों के बीच जाकर जागरण का काम कर रहे हैं। फाउंडेशन की विनीता नाम की एक लड़की खुद घर में मास्क बना कर लोगों के बीच बांट रही है। वरिष्ठ समाज कर्मी रतन मंडल 11 लाख रुपए लोगों की कठिनाई दूर करने के लिए दान दे दी है। प्रशांत विक्रम लोगों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कर रहे हैं। ऐसे ही विभिन्न राज्यों में युवा लोगों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं।

इस लॉक डाउन के बीच सांप्रदायिक सद्भाव का मार्मिक उदाहरण भी देश के लोगों ने पेश किया है। बुलंदशहर में जब एक हिन्दू बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो गई तो उनके समुदाय के लोगों ने उसके अंतिम संस्कार में सहयोग करने से में किया तो एक मुस्लिम युवक की पहल पर मुसलमानों ने उनका अंतिम संस्कार किया। दूसरी ओर बरेली के अस्पताल में एक मुस्लिम गर्भवती महिला बहुत परेशान थी। उसके पति नोएडा में थे। डिलीवरी के समय वह महिला अपने पति को सामने देखना चाहती थी। नोएडा के एक पुलिस ऑफिसर रण विजय सिंह ने उसके पति को डिलीवरी के समय बरेली पहुंचा दिया। पति के पहुंचने पर मुस्लिम महिला ने बेटे को जन्म दिया। इस महिला ने पुलिस ऑफिसर का शुक्रिया अदा करते हुए यह फैसला सुनाया कि नवजात बेटे का नाम वह रण विजय खान रखेगी।

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र

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