मध्य प्रदेश

गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचते हैं नवजात, इसलिए बढ़ रही मौतें

भोपाल

तमाम दावों और इंतजामों के बावजूद शिशु मृत्यु दर में सुधार न होने से स्वास्थ्य विभाग परेशान है। अस्पतालों के एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई) में भी लगातार मौतें हो रही हैं और विभाग तमाम प्रयासों के बाद भी इसमें कमी नहीं ला पा रहा है। विभाग की ही एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इसमें बताया गया है कि पहले नवजातों का स्थानीय स्तर पर इलाज किया जाता है। गंभीर स्थिति होने पर ऐसे बच्चों को सीधे एसएनसीयू में भर्ती कराया गया। इससे नवजातों की मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। सबसे ज्यादा खराब हालात गुना, मुरैना, रतलाम, सागर, भोपाल व जबलपुर के हैं।

काटजू में 10 माह में 251 ने दम तोड़ा
राजधानी में दो एसएनसीयू काटजू और जेपी अस्पताल में हैं। नवजातों की मौत के जिस अवधि के आंकड़े हैं, उसमें कैलाश नाथ काटजू में दस माह में 1109 नवजातों को भर्ती किया गया, जिसमें से 251 ने दम तोड़ दिया। वहीं गुना में 6550 प्रसव हुए थे। 2643 नवजातों को एसएनसीयू में भर्ती किया गया, इनमें से 442 ने दम तोड़ दिया। 63 नवजातों के परिजन अस्पताल से ले गए।  मुरैना में 4037 नवजातों में 424 की मौत हो गई।

प्रोटोकाल का पालन नहीं
विशेषज्ञों के अनुसार एसएनसीयू में प्रोटोकाल का पालन नहीं होता। एक वार्मर में तीन-तीन बच्चे होते हैं। चार नवजातों पर एक स्टाफ नर्स के प्रोटोकाल का भी पालन नहीं हो रहा।

प्रारंभिक उपचार नहीं मिलता
स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा में पता चला है कि जितने बच्चे एसएनसीयू में भर्ती हो रहे हैं, उनमें से 55 से 60 प्रतिशत का जन्म उस अस्पताल में नहीं हुआ है। नवजात की तबीयत बिगड़ी तो पहले स्थानीय स्तर पर इलाज हुआ। गंभीर होने पर उन्हें रेफर किया गया और फिर एसएनसीयू में भर्ती कराया गया। यानी इन बच्चों को प्रारंभिक उपचार नहीं मिला। गंभीर दशा होने में सीधे एसएनसीयू में भर्ती कराए गए।

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