छत्तीसगढ़

शराब बंदी की मांग सभी ने किया मगर चाहते कोई नहीं…

✍अमित जोगी

छत्तीसगढ़ में कोई भी नेता खुलकर शराबबंदी का विरोध नहीं करेगा। सबको पता है कि प्रदेश में शराब की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। कबीरपंथी और सतनामी जिनके अनुयायी छत्तीसगढ़ की 60 प्रतिशत आबादी है, दोनों ही मानते हैं कि प्रदेश में शराब बंद होनी चाहिए। आदिवासियों में भी अब शराब बंद करने की बात होने लगी है। मेरे पिताजी अकेले आदिवासी नेता नहीं हैं जब वे कहते हैं कि बूढ़ा देव और ठाकुर देव को ख़ुश करने के लिए महुआ नहीं, महुआ के फूल ही पर्याप्त हैं।

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने 2018 विधानसभा चुनाव के पहले रायपुर के कांग्रेस भवन में अपने हाथ में गंगाजल रखकर सरकार बनते ही छत्तीसगढ़ में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की क़सम खाई थी। हालांकि उनके इतालवी संस्कार गंगाजल की पवित्रता को कितनी अहमियत देते हैं, ये कालांतर और दृष्टिकोण का विषय है। ख़ैर, भाजपा, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) और बसपा, तीनों दल उनकी इस घोषणा का विधानसभा में अधिकृत रूप से समर्थन कर चुके हैं। मतलब प्रदेश के तीनों दलों- 90 में से 90 विधायकों में कोई विवाद नहीं है कि छत्तीसगढ़ के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए शराब बंद होनी चाहिए।

विंसटन चर्चिल का मशवरा कि अगर कुछ नहीं करना है तो समिति बना दो का अनुसरण करते हुए भूपेश सरकार ने शराबबंदी के लिए एक नहीं, तीन-तीन समितियों का ताबड़तोड़ गठन भी कर दिया है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ पूरे देश में शराब पीने में नम्बर वन है। हर महीने सरकार जनता को 526 क़िस्म की औसतन 1 करोड़ प्रूफ़ लीटर देशी और विदेशी मदिरा खुलेआम पिलाकर वर्ल्ड रिकार्ड बना रही है। सीधे शब्दों में कहें तो शराबबंदी का वादा करके भूपेश बघेल और उनके कोचिए-बंधु छत्तीसगढ़ में शराबमंडी चला रहे हैं।

आख़िर ऐसी क्या मजबूरी है कि हम शराब बंद नहीं कर रहे जबकि हमसे आबादी और क्षेत्रफल में बड़े गुजरात और बिहार ऐसा सफलतापूर्वक कर चुके हैं ? आज की कॉलम में मैं इस प्रश्न का उत्तर दूँगा। पहला और सबसे सरल और सीधा उत्तर: रमन सिंह के शासनकाल में 2017 के बाद सरकार ने शराब के धंधे पर अपना ऐसा एकाधिकार (मोनौपलि) क़ायम किया कि घर बैठे मुख्यमंत्री निवास के पश्चिमी गेट से बिना लॉगबुक में एंट्री के हर रात 2.5 करोड़- 2000 रुपए के गुलाबी नोटों के बंडल में नकद पहुँचने लगा। रक़म पूरी है, इसके लिए नोट गिनने की मशीन लगाई गई।

जब आए दिन चुनाव सिद्धांतों और संबंधों की जगह पैसों और दारू के दम पर जीता जाता है, तो सोने के अंडे देने वाली शराब की इस मुर्गी का गला काटना राजनीतिक बेवक़ूफ़ी नहीं तो और क्या? अगर मैंने ग़लत लिखा है, तो दोनों मुख्यमंत्री, पूर्व और वर्तमान- रमन सिंह और भूपेश बघेल- मुझपर आपराधिक मानहानि का केस करें। वैसे भी पिछले दो दशकों में दोनों मुझपर इतने आलतू-फ़ालतू केस कर चुके हैं कि आदत सी हो गई है और हँसी भी आती है।

दूसरा कारण इससे कहीं ज़्यादा चिंताजनक है- और जब तक इस कारण को हम आड़े हाथ नहीं लेते, हमारा भविष्य अंधकारमय ही रहेगा (छत्तीसगढ़ के शराब में डूबते भविष्य की झलक के लिए संलग्न वीडियो क्लिप ज़रूर देखें)…

शराब की इस दलदल में नेता और जनता, हम सब नंगे हैं! आज तीसरा कॉलम में बस इतना ही।

इंतज़ार करिए, सोमवार, 3 फ़रवरी 2020 तक।

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