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छत्तीसगढ़ के 20 साल बाद डाययग्नोसिस सही लेकिन इलाज में कमी: किसान अभी भी परेशान क्यों?

रायपुर (गुणनिधि मिश्रा) । किसानों और गरीब, आदिवासियों के हितों के लिए छत्तीसगढ़ बना, मगर पिछले 20 सालों में छत्तीसगढ़ ने क्या इन वर्गों की भलाई की है, क्या ये वर्ग अब बेहतर स्थिति में हैं। इनका कितना विकास हुआ है, यह सवाल कल एक सोशल मीडिया के कार्यक्रम में जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक अमित जोगी से पूछा गया। इस पर उनसे अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए एक मिनट का समय दिया। अमित जोगी ने तो उस समय अपनी प्रतिक्रिया दे दी लेकिन आज उन्होंने इस पर विस्तार से अपनी प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने कहा है कि समस्या का डाययग्नोसिस (मूल्यांकन) तो लगभग सबका सही रहा है लेकिन इलाज में कमी है। धान ख़रीदी की शुरुआत मेरे पिता स्वर्गीय अजीत जोगी ने 2001 में करी, 2016 में 2500 समर्थन मूल देने और क़र्ज़ माफ़ करने के लिए शपथ पत्र भरा जिसका अनुसरण वर्तमान सरकार ने अपने 2018 के चुनावी घोषणापत्र में बहुत हद तक किया भी है। मैं इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार को बधाई देता हूं।

इन दोनों के साथ-साथ जिन तीन उपायों में अजीत जोगी ने अपने अल्प-शासन काल में बल दिया था- कवर्धा, बालोद और जरही में शक्कर कारख़ाना शुरू कर के फसल चक्र परिवर्तन, मिनी माता हसदेव बांगो, समोदा, मोंगरा, जोरहा नाला और जोगी डबरी जैसी योजनाओं से सिंचित रक़बा बढ़ाने और NABARD और सहकारी बैंक से प्रदेश के किसानों को कम ब्याज में आसानी से कर्ज देने की व्यवस्था लागू करने- में न के बराबर निवेश हुआ है। हालाँकि इसके दो सुखद अपवाद बहादुर अली के IB और ABIS पोल्ट्री और सोयाबीन उद्योग और कमल सारडा के वचन डेरी और सब्ज़ी व्यवसाय में निजी क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। इसके कारण समस्या अभी भी बरकरार है।

समर्थन मूल और कर्ज माफ़ी के बाद अब इन तीनों पर युद्ध स्तर पर काम करने की आवश्यकता है ताकि सरकार की किसानों पर राजनीतिक और किसानों की सरकार पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हो सके और वैश्विक अर्थव्यवस्था में छत्तीसगढ़ के किसान अपने पैरों पर न केवल खड़े हो बल्कि तेज़ी से दौड़े और रेस में फ़र्स्ट आए।

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