रायपुर। भारत की राजनीति के भीष्म पितामह हम सबके बाबूजी मोतीलाल वोरा के निधन से मेरा पूरा परिवार स्तब्ध है। पापा को ‘वोरा अंकल’ के बनाए पान खाने का खूब शौख था। रात को वे घंटों बैठकर अनेक ज़टिल विषयों पर बातें करते थे और हल ढूँढ ही निकालते थे। मैं दोनों दिग्गजों की सियासती शय-मात के इस खेल को उनके ड्रॉइंग रूम में एक कोने में बैठकर देखता रहता था। ये उनका बड़प्पन था कि उन्होंने मुझे कभी बाहर जाने को नहीं कहा। वास्तव में आज एक युग का अंत हो गया!
परसों ही मैंने उनसे फ़ोन पर आशीर्वाद लिया था। उनकी आवाज़ से लग रहा था कि वे स्वस्थ हो गए हैं। विश्वास ही नहीं होता कि उनके विशाल राजनीतिक अनुभव और सबके प्रति उदारवादी सोच का साया हम सबके ऊपर से हमेशा के लिए उठ गया है। ये छत्तीसगढ़ के लिए अपूर्णीय क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें और उनके परिजनों, विशेषकर मेरे बड़े भाई अरुण वोरा और उनकी माता, को इस अतूलनीय क्षति का सामना करने का भरपूर साहस दें।