धर्म

सघन वनों के बीच मनोरम रास्ता है अमरकंटक से करंजिया तक …

नर्मदा परिक्रमा भाग -3

अक्षय नामदेव। अमरकंटक अरण्यी संगम से कबीर चबूतरा होते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। अमरकंटक से करंजिया तक का रास्ता बड़ा मनमोहक है। प्राकृतिक सघन सालवन के अलावा रोपे गए आयातित वृक्ष मार्ग की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। अमलडीहा, रूसा, गोरखपुर, गाड़ासरई, मोहतरा होते हुए दोपहर लगभग 3 बजे हम नर्मदा तट चंदनघाट पहुंचे। चंदन घाट बड़ा मनोरम है। मां नर्मदा का पाट यहां चौड़ा हो चुका है। तेज धूप में भी मां नर्मदा का कल- कल नाद शांति प्रदान करता है। नर्मदा तट पर लगे वृक्ष घाट की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं और इन वृक्षों पर चिड़ियों का कलरव नर्मदा की कल-कल नाद में मिश्री घोल रहा है। चंदन घाट डिंडोरी जिले के जनपद पंचायत बजाग के ग्राम पंचायत सुकुलपुरा में स्थित है। ग्राम पंचायत अच्छा काम कर रही है यह घाट की खूबसूरती देख कर लगता है। अनेक चबूतरे, सुलभ शौचालय वहां पर बनाए गए हैं। चंदन घाट के दाहिनी ओर नर्मदा नदी पर बने ऊंचे बड़े पुल से राजेंद्रग्राम अनूपपुर जाया जा सकता है। इस पुल की लंबाई और ऊंचाई देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि बरसात के दिनों में यहां मां नर्मदा कितने विकराल रूप में रहती होगी?

चंदन घाट के तट पर बने शेड एवं सीढियों पर हम परिक्रमावासी बैठकर मां नर्मदा को निहारने लगे। चंदन घाट काफी खूबसूरत एवं साफ सुथरा है। तट पर भोलेनाथ का मंदिर भी बना हुआ है। साथी परिक्रमवासी श्रीमती विद्या बहन, श्रीमती अनुसूइया चतुर्वेदी, बिसेन चाची, श्रीमती मधु एवं निरुपमा तट पूजा में लग गए। पूजा के पाठ के बाद साथी परिक्रमा वासियों ने साथ रखा भोजन निकाला और वितरण की व्यवस्था बनाने में लग गए। कुमारी कल्पना एवं सरोज बाला एवं बिसेन चाची ने वितरण व्यवस्था अपने हाथ में ली। दिनभर के धूप और पूजा पाठ के बाद अलग-अलग घरों से, अलग-अलग हाथों से बनाया गया भोजन स्वादिष्ट और रुचिकर लग रहा था। अचारों की विविधता जोरदार थी।

नर्मदा परिक्रमा में नियम है कम से कम एक बार का भोजन लेकर चलें आगे की व्यवस्था मां नर्मदा स्वयं करेंगी,,!

भोजन के बाद मैं और बेटी मैंकला मां नर्मदा के तट की तस्वीरों को कैमरे में कैद करने में लग गए। मैंकला बेटी की दूर जाती नजरों ने देखा कि नदी के बीच धार में दो स्त्री-पुरुष डूबे डूबे से दिख रहे हैं। मैंकला ने मुझसे सवाल किया-पापा वे पानी की तेज धार में क्या कर रहे हैं। मैंने अपनी नजर उस ओर घुमाई। देखता हूं कि पति-पत्नी दोनों मिलकर नदी से रेत निकाल रहे हैं। पति बांस की टोकरी में नदी से रेत छानकर अपनी पत्नी को देता है और पत्नी बेचारी पानी की तेज धार को पार करते हुए तट पर आकर रेत डाल रही है। तट पर लगे रेत के छोटे से ढेर को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि परिवार चलाने के लिए दोनों पति-पत्नी तेज धूप में पानी के धार में कठिनाई से किस तरह कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मैंने बेटी को बताया वे लोग नदी से रेत निकाल रहे हैं। अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा में प्रारंभ में उतनी रेत नहीं है कंकड़-पत्थर ज्यादा है। उसे निकालकर, छानकर, इकट्ठा कर बेचेंगे। बेटा यही है जीवन संघर्ष! कम शब्दों में बेटी बहुत कुछ समझ गई। आगे उसने कुछ सवाल नहीं किया।

हम काफी देर वहां चंदन घाट बैठे रहे। तभी पीछे से एक व्यक्ति ने आवाज लगाई – नर्मदे हर,,,। हमारी ओर से जय घोष हुआ हर हर नर्मदे,,। आप सभी परिक्रमा वासी हैं। हमने उत्तर दिया जी,,। आवाज लगाने वाले ने एक बार फिर पूछा आप लोग चाय लेंगे या कॉफी ? हम संकोच में सिर्फ इतना कह सके कि हमने दोपहर का भोजन साथ रखा था वही कर रहे हैं। उसने कुछ जवाब नहीं दिया और थोड़ी देर वे सज्जन डिस्पोजल एवं केतली लेकर हाजिर थे और सबको एक-एक कर कॉफी देने लगे। उन्होंने बताया यहां तट पर पहुंचने वाले परिक्रमा वासियों की इसी तरह सेवा की जाती है। हम कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। मां नर्मदा के तट का प्रभाव सामने दिख रहा था। उन्होंने कहा, रात्रि विश्राम यहीं करिए, भोजन इत्यादि का प्रबंध हो जाएगा। हमने जवाब दिया भोजन तो हो चुका है। कुछ और आगे बढ़ जाएं तो अच्छा रहेगा। कॉफी पिलाने वाले सज्जन ने मुस्कुराकर आत्मीयता का प्रदर्शन किया। हम रवानगी की तैयारी करने लगे।

नर्मदा मैया की जय,

हर हर नर्मदे के जयघोष के साथ चंदन घाट से हम आगे के लिए रवाना हो गये।

हर हर नर्मदे

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