लेखक की कलम से

तुम हो…

अंधकार में झांकने का प्रयास किया

जोड़ने के प्रयास में टूटता गया

और सुनो!

जीवन के आँखमिचौली के खेल में

वह अचानक आक्रमक होकर बोला

यदि तुम हो ,तो मैं भी हूं

प्रतीक्षारत नहीं

केवल संघर्षरत हूँ

किसी भी चमत्कार की कोई आशा नहीं

तुम्हें जो व्यक्त कर दे ऐसी कोई परिभाषा नहीं

 

 

            ©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र      

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