लेखक की कलम से
आषाढ़ की बारिश …
कौन है अपना कौन पराया कौन यहां किससे हारा
बेघर बेचारा है वो उसके सपनों को किसने मारा
नवल निकेतन के वासी बसेरा रहा उजाड़
मूसलाधार में आग बरसती मानव को किसने जारा
कितनों की रातें भीग गई दिन बारिश में धूल गया
ये आषाढ़ का पहला दिन था रंक का रंग मूल गया
सपनों ने सपनों को मारा सपने जाने किधर गये
मानव दानव बनकर सारी संवेदनाएं भूल गया!
©लता प्रासर, पटना, बिहार