लेखक की कलम से
प्रीत ….
“जख्म दिल पर लगा नीर आंखों से बहा।
होठ मुस्कुराते रहे हर घड़ी शान से।।
माफ़ भी कर दिया ,भूल पाए नहीं।
लग रहा है वो प्यारा, हमें जान से।।
होठ मुस्काए हैं, वो चले आए हैं।
जो लगें हमको प्यारे कदरदान से।।
दिल पे उसकी खता सारी सहते गये।
मन न विचलित हुआ उसके अहसान से।
दिल जख्मी हुआ पर दिखाया नहीं।
दाग उस पर लगाया न ईमान से।।
उसके चर्चे बड़े, है मुझे भी ख़बर।
प्रीत करती रही फिर भी अंजान से।।”
©अम्बिका झा, कांदिवली मुंबई महाराष्ट्र