जीने का औचित्य ….
एक वृक्ष के सुखे हुए ठूँठ,
और आदमी का बुढ़ापा।
इस बात का संकेत करता है कि,
वह चाहे कितना भी जीर्ण शीर्ण,
क्यों न हो जाये,
पर उनके गोद में एक सुखद,
भविष्य पलने की ,
प्रबल संभावना होती है—
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एक कटा हुआ वृक्ष और,
बिस्तर पर पड़ा बूढ़ा व्यक्ति,
इस बात की सीख देता है कि,
मत कर तू अभिमान वर्ना,
एक दिन तू भी मेरे जैसे ,
कट के रह जाएगा—
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एक सूखी लकड़ी की ओट से,
निकला हुआ नन्हा सा पौधा,
मुस्कुराते हुए गाता है कि,
यदि बचपन को बुढ़ापे का,
सहारा मिल जाए तो,
उनका जीवन भी संवर जाता है—
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जमीन पर पड़ा लकड़ी का टुकड़ा,
इस बात की सीख देता है कि,
तुम अपना आधार कभी मत छोड़ो,
वर्ना निराधार हो जाओगे।
जड़ें जितनी लम्बी होगी,
आपका भविष्य उतना ही,
सुंदर और सुखद होगा—
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जमींदोज़ होते हुए सूखी लकड़ी,
और कब्र की ओर जाती जिंदगी,
यह सोचती हैं कि, मेरे जाने के बाद,
यह दुनियाँ शायद तबाह हो जाएगी,
लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता–
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मृत्यु के दहलीज पर पहुँचा व्यक्ति,
यह सोचता है कि,
यदि मैं जल की तरह तरल होता,
आकाश की तरह सरल होता ,
और धरती की तरह धैर्यवान होता तो,
शायद मेरे जीने का कुछ औचित्य होता—-
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©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)