लेखक की कलम से
दुआ करते रहिए …
तुम्हारे हुक्म की तामील करते करते
वो बच नहीं पाये जीनेवाले मरते मरते
कुछ दुआएं गांठ बंधी थी लेकिन दवा न मिली
कैसे कहें अपना तुम्हें सोचती हूं हंसते हंसते
गली चौबारों में ये चर्चे आम हैं तेरे
तू हठ की लकीरों से कैनवस रंगता है
रंगना जरा भूख भय भरोसा उंगलियों से
फिर भी खाली रहेगी झोली भरते-भरते!
©लता प्रासर, पटना, बिहार