लेखक की कलम से
कोयल की कुहुक …
कोयल की कुहुक,
गाता है कौआ।
भौरों का झुंड,
मैलों पर बैठा।
सरमई सांझ
सुनहरा दुपट्टा फेंक,
नाचती रात के आंगन!
इश्क! अंधा, बहरा, झूठा
गीत! कुत्सि शब्दों के ढ़ेर
लेखनी! चोरी की
संगीत! उच्सृंखल शोर,
साजिन्दे तकनीकी के!
मौसम! परायों से पराया,
पानी खून से भी मंहगा,
रक्षक! और शस्त्र!
नेता के हरम के साजो सामान
बाबू?
अधिकारी का बाप।
अधिकारी ?
सत्ता का नाजायज बेटा ?
©नलिनी तिवारी, शहडोल, मध्य प्रदेश
परिचय : एमए, बीएड, अध्ययन अध्यापन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन।