लेखक की कलम से

शांत रस …

तुझको पा और क्या पाना,

मन तो है बस हरि दीवाना,

जित देंखू उत तू दिख जाए,

प्रेम मगन मन बस तुझको गाये।

 

मन मंदिर बना तेरा आशियाना,

मैंने सारा जग इसको माना,

जीवन मेरा बस तुझको गाना,

तू ही मेरी खुशियो का खजाना।

 

जाना तुझको अब क्या है शेष,

तू ही बना कुछ मेरा भेष,

न कुछ शेष रहा तन मन मे,

तेरे गीत ही गूंजे मन मे।

 

तू ही तो बस प्रियतम मेरा,

मेरे जीवन का रूप सुनहरा,

तिमिष हो या भोर सवेरा,

दिखता बस तेरा ही चेहरा।।

 

 

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी            

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